जनवरी 2025 भारतीय शेयर बाजारों के लिए एक ऐतिहासिक रूप से खराब महीना साबित हो रहा है. विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने अब तक लगभग $7.8 अरब (₹63,000 करोड़) की शुद्ध बिकवाली की है, जो जनवरी के किसी भी महीने में अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है. यह आंकड़ा जनवरी समाप्त होने से पहले $8 अरब के करीब पहुंचने की संभावना है, जिससे यह महीना भारतीय बाजारों के लिए सबसे खराब शुरुआत वाला साल बन गया है. FIIs की यह भारी बिकवाली भारतीय बाजारों में अस्थिरता को और बढ़ा रही है और निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन गई है.
इससे पहले, सबसे अधिक मासिक बिकवाली अक्टूबर 2024 में दर्ज की गई थी, जब FIIs ने $11.2 अरब का निवेश निकाला था. मार्च 2020, जो कोविड-19 महामारी के शुरुआती दौर का महीना था, में भी $8.4 अरब की बिकवाली देखी गई थी. इस साल जनवरी में अब तक, FIIs ने भारतीय शेयर बाजारों के विभिन्न क्षेत्रों से अपना निवेश निकाला है, जिससे व्यापक प्रभाव पड़ा है.
किस सेक्टर को कितना नुकसान हुआ?
जनवरी के पहले दो हफ्तों में FIIs ने सबसे ज्यादा बिकवाली वित्तीय सेक्टर में की, जहां $1.41 अरब का निवेश निकाला गया. इसके अलावा, कंज्यूमर सर्विसेस सेक्टर में $405 मिलियन, पावर सेक्टर में $360 मिलियन, और कैपिटल गुड्स में $303 मिलियन की बिकवाली दर्ज की गई. मेटल्स, आईटी, ऑटोमोबाइल्स और कंस्ट्रक्शन जैसे अन्य सेक्टरों में भी $200 मिलियन से अधिक की बिकवाली हुई. इन सभी सेक्टरों में भारी बिकवाली के चलते निवेशकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.
सेंसेक्स और निफ्टी पर प्रभाव
FIIs की इस बड़ी बिकवाली का असर भारतीय बाजारों पर स्पष्ट रूप से देखा गया. जनवरी में अब तक सेंसेक्स और निफ्टी में 3.5% की गिरावट दर्ज की गई है. यह जनवरी 2017 के बाद की सबसे बड़ी गिरावट है और जनवरी 2021 में दर्ज 3.07% की गिरावट को भी पार कर गई है. व्यापक बाजारों पर इसका प्रभाव और भी गंभीर रहा है, जहां बीएसई मिडकैप और स्मॉलकैप इंडेक्स में 9% से अधिक की गिरावट देखी गई है.
बिकवाली के प्रमुख कारण
इस भारी बिकवाली के पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारक हैं. वैश्विक स्तर पर, आर्थिक सुस्ती, ऊंची ब्याज दरें, और मुद्रास्फीति ने निवेशकों की धारणा पर नकारात्मक प्रभाव डाला है. अमेरिकी डॉलर की मजबूती और बॉन्ड यील्ड में वृद्धि ने भी FIIs को भारतीय बाजारों से अपना निवेश निकालने के लिए प्रेरित किया है. इसके अलावा, डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद टैरिफ वॉर की संभावनाओं ने निवेशकों के बीच अनिश्चितता पैदा की है.
विश्लेषकों की राय
विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय बाजारों में ऊंचे वैल्यूएशन ने भी बिकवाली के दबाव को बढ़ावा दिया है. हालांकि, भारतीय बाजार के वैल्यूएशन अब नीचे आ रहे हैं, और विश्लेषकों को उम्मीद है कि अमेरिकी बॉन्ड यील्ड और डॉलर इंडेक्स के स्थिर होने से भारतीय बाजारों को स्थिरता मिल सकती है. आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर वैश्विक संकेतक स्थिर होते हैं, तो भारतीय इक्विटी बाजारों को राहत मिल सकती है.