भारत में मिडिल ग्लास फैमिली हमेशा ही परेशान रहती है. कभी अपनी इनकम को लेकर तो कभी बढ़ती महंगाई से टूटती कमर को संभालने में. इन सब के बीच टैक्स के बढ़ते बोझ ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है. हालांकि बजट जैसे-जैसे करीब आ रहा है, लोगों की उम्मीदें सरकार से बढ़ रही हैं कि शायद इस बार मिडल क्लास के ऊपर से टैक्स का कुछ बोझ हल्का होगा.
दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में लोगों की आय तो बढ़ी है, लेकिन टैक्स के कारण पर्सनल इनकम खत्म हो रही है. ऐसे में लोगों को उम्मीद है कि इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस पर जरूर कुछ ठोस कदम उठाएंगी. जैसा कि उन्होंने शेयर बाजार में उछाल के दौरान कैपिटल गेन और दूसरे टैक्स में वृद्धि की थी. अब बाजार में गिरावट के दौरान उनसे राहत की उम्मीद की जा रही है.
लोगों का फूट रहा फ्रस्टेशन
टैक्स का बोझ सहते-सहते लोग अब इतने परेशान हो गए हैं कि सोशल मीडिया पर उनका फ्रस्टेशन फूट रहा है. वेंकटेश अल्ला नाम के एक सोशल मीडिया यूजर ने एक रसीद पोस्ट की और बताया कि पहले से ही 31.2% इनकम टैक्स देने के बाद एक कार खरीदने के लिए 48% का टैक्स देना पड़ रहा है. वेंकटेश ने फाइनेंस मिनिस्ट्री को टैग करते हुए लिखा- ये क्या है ? @FinMinIndia? क्या इस दिनदहाड़े लूट की कोई सीमा नहीं है? आपकी अक्षमता और अकुशलता भारत को पीछे धकेल रही है. यह बिल्कुल शर्मनाक है!
पोस्ट में उन्होंने कहा है कि अगर आप ₹1,000 सैलरी पाते हैं तो उसमें से ₹340 का टैक्स दे देते हैं. इसके बाद जो रकम बचती है, उसमें पेट्रोल पर खर्च किए गए ₹200 पर ₹110 का कर लगता है. शिक्षा पर खर्च किए गए ₹200 पर ₹36 जीएसटी लगता है. बीमा पर खर्च किए गए ₹100 में ₹18 जीएसटी लगता है. किताबों और स्टेशनरी पर खर्च किए गए ₹100 पर ₹18 जीएसटी लगता है. अगर वह ₹100 बचाता है और ₹50 ब्याज कमाता है, तो उसे कैपिटल गेन टैक्स के रूप में ₹10 का भुगतान करना होगा.
तो बचता क्या है? सिर्फ 300 रुपये, जिसमें से टोल शुल्क, अस्पताल का बिल (जीएसटी के साथ), किराया, किराने का सामान और एंटरटेंमेंट जैसे खर्च अभी भी बाकी हैं. हमारी आय का 50% से ज्यादा हिस्सा सरकार निगल जाती है. और बदले में हमें क्या मिलता है? खराब वायु गुणवत्ता, गड्ढों से भरी सड़कें, बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, सुस्त न्यायपालिका, ढहता पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ती महंगाई.अपने पोस्ट में वेंकटेश ने पॉलिसी मेकर्स की भी आलोचना की और लिखा कि #टैक्सटेररिज्म भारत के भविष्य के लिए खतरनाक है. ये अशिक्षित और अक्षम राजनेता इसे नहीं समझते. न ही वे लोग जो अपना वोट बेचते हैं.
IMF के पूर्व एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुरजीत भल्ला ने भी एक इंटरव्यू में इस बारे में बात की थी. उन्होंने कहा था कि भारत का टैक्सेशन, इससे पहले ऐसा कभी नहीं था. उन्होंने इसके लिए “अभूतपूर्व” शब्द का इस्तेमाल किया. एनडीटीवी से बातचीत के दौरान भल्ला ने आईएमएफ, ओईसीडी और विश्व बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि हम अपने लोगों पर इस हद तक टैक्स लगा रहे हैं, जैसा कहीं और नहीं देखा गया है.
भारत का टैक्स-टू-जीडीपी अनुपात 19% है, जो चीन और वियतनाम जैसी पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में काफी अधिक है. चीन और वियतनाम में 14.5% की दर बनाए रखते हैं. भल्ला ने इस पर भी टिप्पणी की और कहा कि चीन तेजी से बढ़ रहा है और पूर्वी एशिया फल-फूल रहा है. तो हम उनके टैक्सेशन मॉडल का अध्ययन क्यों नहीं कर रहे हैं? हम कोरिया और अमेरिका की तरह कर लगा रहे हैं – जो हमसे दस गुना अमीर देश हैं. सरकार को इस बारे में स्पष्टीकरण देने की जरूरत है.