शराब ना बेचें तो प्रदेश के विकास का क्या होगा। यह यक्ष प्रश्न पिछली सरकार के साथ वर्तमान सरकार के सामने भी खड़ा है। शराब बेचना प्रदेश सरकार की बड़ी मजबूरी है। सरकार किसी की भी हो शराब बेचे बगैर नहीं रह सकती। कारण भी बहुत बड़े हैं। बजट के राजस्व व्यय का बड़ा हिस्सा शराब से ही आता है। शराब ना बेची जाए तो सरकार चलाना या यूँ कहें कि बड़ा बजट बनाना लगभग नामुमकिन सा है। जब कांग्रेस सरकार ने शराब बंदी की बात अपने घोषणापत्र में की , तो विपक्ष में भाजपा थी। कांग्रेस की सरकार जिसने यह घोषणा की थी वह अच्छी तरह जानती थी कि शराब बन्द नहीं की जा सकती। हमारा प्रदेश आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है। यहां शराब का धार्मिक महत्व आदिवासियों के बीच क्या है ,यह सब जानते हैं। विपक्ष में रहते भाजपा भी जानती थी कि शराबबंदी संभव नहीं है। लेकिन इसी को जानते समझते हुए भी इसे चुनावी हथियार बनाया। कांग्रेस सरकार पर कड़े प्रहार इसी नाम से किये। शराब बंदी के लिए गाहे बगाहे सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस आये दिन के कड़े प्रहार से पांच साल तक प्रभावित रही। जब जब भाजपा ने प्रहार किया कांग्रेस तब तब असहज हुई। बचाव में कहा जाता था कि अभी हमारे पांच साल पूरे तो होने दीजिये,अभी भी हमारे पास समय है। जबकि वह जानती थी हम शराबबंदी नहीं कर पायेंगें। कोरोना काल में जो कुछ व्यवस्थाएं कांग्रेस शासन काल में आबकारी विभाग नें पीने वाले दीवानों के लिए की,भाजपा ने उसकी कदम कदम पर आलोचना की।शराब बंदी की बात कहने वाली सरकार ने जब घर घर शराब पहुंचाने ऑनलाइन आर्डर पर व्यवस्था की तब भाजपा हमलावर हुई। अनेक बार भाजपा ने उग्र रुख इस विषय पर दिखाया। प्रदेश सरकारों ने लगभग 4000 करोड़ से शुरू शराब के राजस्व की बढ़ोतरी 24 साल में 7300 करोड़ तक पहुंचा दी, पर शराब बंदी पर मौन धारण किये रही। कोई प्रयास दिखा हो प्रत्यक्ष दिखा तो नहीं। हां यह जरूर कि भाजपा ने योजना बढ़ तरीके से यह प्रोपेगंडा फैलाना जरूर शुरू किया कि सरकार बहुत बडा घोटाला शराब के धंधे में कर रही है। चर्चा जनता में भी शुरू हो गई। भाजपा ने खूब हवा दी। केंद्रीय एजेंसियों ईडी-सीबीआई-आयकर ने अपना कमाल दिखाना शुरू किया कांग्रेस घेरे में फंसती दिखी। महादेव एप से शुरू यह हमला शराब घोटाले के भीतर तक चला गया। कौन कौन भीतर हुए बताने की बात नहीं जग जाहिर हो चुका। आरोप सिद्ध होते तक हम यह नहीं कह सकते कि सभी मुजरिम हैं और एजेंसियों ने सही कार्यवाही की है। यह तो चर्चा चल ही गई कि कांग्रेस सरकार में शराब के काम में भीतर खाने सब सही नहीं चल रहा था। जनता ने सोचा और भाजपा ने एक नैरेटिव सेट किया वह सफल हो गया। परिणाम सामने आ गया। सरकार चली गई और कांग्रेस सरकार के खिलाफ शराब की आलोचना में जुटी भाजपा खुद ही सरकार में आ गई। अब शराब बंदी की बात करना पड़ेगा लोगों ने सोचा था कि यह अब होगा। शराबबंदी होकर रहेगी। तब कांग्रेस की सरकार आबकारी विभाग के द्वारा शराब बेच रही थी,अब भाजपा की सरकार वही शराब उसी बेहतरीन व्यवस्था के बीच बेच रही है। शराब बंदी की बात एकतरफ चली गई ,सरकार बनी है, अब हम बेचेंगे ,और कांग्रेस आलोचना करेगी। यानी शराब अपनी जगह बनी हुई है ,बनी रहेगी बस पासा भर पलट गया है। आज ही शराब के शौकीनों को भाजपा सरकार ने हिन्दू नववर्ष का तोहफा दिया है। शराब को सस्ता बेचने का अभूतपूर्व निर्णय लिया है। एक गजल है महंगी बहुत है शराब ,थोड़ी थोड़ी पिया करो उसके मायने वर्तमान सरकार ने बदल दिए हैं। अब गजल के मायने यह लगने लगे हैं कि सस्ती बहुत है शराब ,अब दिल खोल कर पिया करो क्या करें शराब बेचने की मजबूरी जो है,राजस्व बढ़ाना विकास के लिए जरूरी है। सच कहा कि किसी भी विकास के लिए विनाश भी जरूरी है। तभी तो सामाजिक परिणाम की तरफ आंख मूंदकर सरकारी राजस्व बढ़ाने के लिए अब शराब बंदी की बात बन्द करके शराबियों को प्रोत्साहित करना पड़ रहा है।
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