किसी शायर ने खूब लिखा है –
‘दुश्मनी जमकर करो, लेकिन यह गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा ना हो।Ó
यह बात संसदीय लोकतंत्र में बहुत फीट बैठती है। संसद या विधानसभा के भीतर हो या बाहर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोंक-झोंक होती है विपक्ष की जिम्मेदारी होती है कि वह सत्तापक्ष को घेरे और उसे नियंत्रित करें। छत्तीसगढ़ विधानसभा में भी राज्य बनने के बाद से सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे के खिलाफ सदन के भीतर बोलते हैं लेकिन सदन के बाहर वे अच्छे मित्र जैसा व्यवहार भी करते हैं। ऐसा व्यवहार होना भी चाहिए क्योंकि विधायक एक जनप्रतिनिधि के तौर पर जनता की समस्याओं, देशहित और जनकल्याण के विषय को सदन में उठाता है, वह सरकार के खिलाफ में मुखर होता है, तो मुख्यमंत्री और मंत्री के प्रति दुराग्रह नहीं होता है, वह केवल जनता की भावना से सदन को अवगत कराता है। यही भारतीय लोकतंत्र की खूबी भी है। लोकसभा या राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता जमकर हमला करते हंैं लेकिन जब कोई दावत हो तो एक ही टेबल पर बैठकर हंसते-खिलखिलाते भोजन भी करते हैं। यह व्यवहार जब तक बना है, लोकतांत्रिक परंपरा मजबूत है। छत्तीसगढ़ विधानसभा में पिछले कुछ सत्रों के दौरान सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच व्यवहार में जो तल्खी नजर आ रही है, वह स्वस्थ नजर नहीं आती। बजट सत्र विपक्ष के विधायकों के खिलाफ सत्तापक्ष के मंत्री और विधायक जिस प्रकार टीका-टिप्पणी करते हैं वह उचित नहीं है। चूंकि चुनाव के पहले यह आखिरी लंबा सत्र इसलिए मुख्य विपक्ष दल भारतीय जनता पार्टी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती, वहीं कांग्रेस पार्टी भी विपक्ष के इन दांवपेंच का मुकाबल जोर-शोर से करती है। इसके बावजूद सदन में पिछली बार हाथापाई की नौबत आ गई, अभी विपक्ष गर्भगृह में जाकर नारेबाजी करने लगा तो उस पर टिप्पणियां की गई। इसके बाद जो हंगामा देखने को मिल रहा है, उससे छत्तीसगढ़ की संसदीय परंपरा प्रभावित हो रही है।