भारत दैट इज़ इंडिया! इस समय इसी की चर्चा है। संविधान निर्माताओं की भूल के कारण ही सारी गड़बड़ी शुरू हुई। अगर भारत के साथ इंडिया का पुछल्ला न जुड़ता, तो शायद भारत भारत ही रहता, इंडिया न होता। लेकिन हम इंडिया शब्द को लगातार ढोते रहे और अंग्रेज़ी भाषा को भी. इसका सबसे बड़ा कारण था, हमारी सदियों की गुलामी, पराधीनता। हम इस बोध से उबर ही नहीं पाए कि हम स्वतंत्र हो चुके हैं और अब हमें अपनी निज भाषा से काम चलाना चाहिए। हमारी अपनी एक राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। लेकिन हमारे पूर्वज जल्दबाज़ी में थे। उनको शासन का स्वाद लेना था इसलिए संविधान भी मौलिक नहीं रहा। गोरो के कानून हमने जस के तस ग्रहण कर लिए। और देखते ही देखते आज़ादी का अमृत काल ही आ गया। लेकिन इस दौरान थोड़ी चेतना जगी और इंडिया की जगह भारत का उपयोग करने की शुरुआत तो हुई. हालांकि भाजपानीत केंद्र सरकार ने कुछ वर्ष पहले इंडिया शब्द का खूब इस्तेमाल किया था। यह बात किसी से छिपा नहीं है। उनकी अनेक योजनाओं में इंडिया का पुछल्ला लगा रहता तक। खेलो इण्डिया, स्टार्टप इण्डिया जैसी अनेक सरकारी योजनाएँ शुरू हुई। लेकिन अब इंडिया की जगह भारत कहने के प्रति जो ललक दिख रही है, उसे एक अच्छा संकेत ही माना जाना चाहिए। मगर इसके पीछे राजनीति न हो बेहतर। वैसे विपक्ष के गठबंधन ‘इंडिया’ को कहने का मौका तो मिल ही गया है, क्योंकि उन्होंने बड़ी चालाकी के साथ अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा है। भाजपा ने भी बार-बार इंडिया शब्द का प्रयोग न करने के लिए इसकी काट निकाल कर गठबंधन को इंडि एलाइंस कहना शुरू किया। इंडिया का तुक मिलाते हुए उसे घमण्डिया कर दिया। विपक्ष को कहने का मौका मिल गया है कि भाजपा इंडिया से डर गई है इसलिए उसने इंडिया की जगह भारत कहना शुरू कर दिया है। मैं कहता हूं भले ही भाजपा विपक्षियों के गठबंधन से थोड़ा बहुत आतंकित हुई हो, लेकिन उसने भारत शब्द का उपयोग करने का जो सिलसिला शुरू किया है, उस पर उसे कायम रहना चाहिए । अपनी सारी योजनाओं का नाम अब उसे भारत के साथ जोडऩा चाहिए । चाहे खेलो भारत हो या स्टार्टअप भारत हो, या न्यू भारत, हर जगह उनको भारत का ही इस्तेमाल करना चाहिए ।और यह स्पष्ट भी करना चाहिए कि हम अपनी गलती सुधार रहे हैं । कायदे से तो अब संविधान में भी संशोधन करके इंडिया शब्द को विलोपित कर देना चाहिए ।क्योंकि भारत का नाम प्राचीन काल से भारत ही रहा है। यह दुनिया का विचित्र देश है जिसके दो-दो नाम हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि भारत को भारत ही रहने दिया जाए और पूरी हिम्मत के साथ संविधान में संशोधन करके इंडिया की जगह भारत के इस्तेमाल का प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए । इसके लिए साहस की आवश्यकता है। जैसे तमाम विरोधों के बावजूद कश्मीर से धारा 370 खत्म हुई, उसी तरह लाख विरोध किया जाए लेकिन संविधान से इंडिया शब्द हटाने विषयक विधेयक लाकर पारित किया जाना चाहिए। अभी एनडीए के पास पूर्ण बहुमत है इसलिए कोई व्याहारिक दिक्कत भी नहीं आएगी। ठीक है कि विपक्ष चीखेगा, चलाएगा और यह स्वाभाविक है। लेकिन एनडीए को भारत विषयक प्रस्ताव पारित करना चाहिए। अगर सरकार ऐसा करती हैं तो देश में ही नहीं, दुनिया में भी एक अच्छा संदेश जाएगा। देखना यही है कि क्या ऐसा होता है ! जी-20 के सम्मेलन में सरकार ने हिम्मत दिखाई और प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखकर दुनिया को यह संदेश तो दे ही दिया कि हम भारत वाले हैं। ठीक है कि भारत के बाद अंग्रेजी में इंडिया भी लिखा हुआ था, लेकिन प्रधानमंत्री के सामने केवल भारत नाम की पट्टिका लगी हुई थी। उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद में बहुत जल्दी देश के नाम को बदलने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी । हालांकि उसके लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए। 56 इंच का सीना तो चाहिए ही चाहिए। यह सीना कहने तक ही सीमित न रहे। तभी भारत भारत बन सकेगा, वरना वह इंडिया के पीछे-पीछे ही चलता रह जाएगा।