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भारतीय सेना ने चीनी पार्ट वाले ड्रोन को किया बैन ,चीनी पार्ट छिपाने पर कंपनियों के कॉंट्रैक्ट रद्द किए जा रहे हैं

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भारतीय सेना आधुनिक और स्वदेशी तकनीक के सहारे अपनी सेना को ताकत देने में लगी है. खरीद के लिए बाकायदा नए प्रोटोकॉल बनाए गए है. आज के दौर का सबसे खतरनाक हथियारों में से एक ड्रोन. इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है. ऐसिमेट्रिक वॉरफेयर में ड्रोन ने काफी नुकसान पहुंचाया है.  काम को आसान भी किया. भारतीय सेना ने भी बड़ी तादाद में ड्रोन की खरीद की है.  कई ड्रोन की खरीद प्रक्रिया भी जारी है. इन ड्रोन में लॉजेस्टिक ड्रोन, सर्वेलांस ड्रोन शामिल है. आत्मनिर्भर भारत के तहत कोशिश है कि खरीद स्वदेशी कंपनियों से हो. लेकिन कड़ी शर्तों के तहत. शर्त यह है कि ड्रोन में कोई चीनी पार्टस् ना लगा हो.

पिछले साल अगस्त में एक सेना का सर्वेलांस ड्रोन पीओके में चला गया था. यह ड्रोन अपने नीयमित सर्वेलॉंस मिशन पर था. ड्रोन पीओके में जाकर गिर गया. इस घटना के जांच के आदेश दिए गए. यह ड्रोन आइडिया फोर्ज का SWITCH यूएवी था. इस तरह के ड्रोन की संख्या 180 से ज्यादा है. सेना के अलग अलग फॉर्मेशन में यह ड्रोन इस्तेमाल में लाए जाते है. ड्रोन का पीओके जाना इस बात का शक जता रहा था कि कहीं इस ड्रोन के हैक तो नहीं कर लिया गया. हांलाकि जांच रिपोर्ट के बाद इस बात का तो खुलासा नहीं हो सका. इसके पीछे संभावनाए तकनीकि खराबी और हवा की वजह भी हो सकती है. जांच में ड्रोन बनाने वाली कंपनी और सभी सेना के फॉर्मेशन के से फीडबैक भी लिया गया लेकिन इसकी रिपोर्ट संतोषजनक रही.

किसी भी स्वदेशी कंपनी सेना कोई खरीद कर रही हो तो एक सेल्फ सर्टिफिकेट देना लाजमी होता है. इस सर्टिफिकेट में कंपनी को यह बताना होता है कि उनके प्रोडक्ट में किसी तरह का चीनी पार्ट तो नहीं लगा है. लेकिन अब सर्टिफिकेट देने के बाद भी कुछ कंपनियों के प्रोडक्ट में चीनी पार्ट मिले है. इसी के चलते एक कंपनी के कॉंट्रेक्ट को रद्द कर दिया गया है. सेना ने उस कंपनी से तीन अलग अलग तरह के लॉजिस्टिक ड्रोन की खरीद करनी थी. रिपोर्ट की माने तो कैंसिल किए गए ड्रोन की संख्या 400 के करीब है.

चीन दुनिया के घर में झाकने में कभी गुरेज नहीं करता. जासूसी के लिए कंप्यूटरों तक को हैक कर लेता है. बाजारों में जितने भी ड्रोन या क्वाडकॉप्टर है, उनमें अधिकतर चीनी है. या तो चीनी पार्टस् वाले हैं. सेना ने ड्रोन खरीद के लिए एक पॉलेसी बनाई है. जिसमें अब तक सिर्फ सर्टिफिकेट देने से ही काम चल जाता था. अब इसके साथ एक और नीयम जोड़ दिया है. निर्माता कंपनी को यह भी सर्टिफिकेट देना होगा कि उसें कोई मिलिशियस कोड यानी कोई एसा सॉफ्टवेयर या प्रोग्रम तो नही है जिससे ड्रोन हैक या नेटवर्क को डैमेज का कर सके. कंपनियों की तरफ से दिए जा रहे सर्टिफिकेट की सघन जांच की जा रही है. कई लेवल पर उनकी चेकिंग की जा रही है. जिस भी ड्रोन में चीनी पार्टस् लगे है वह ड्रोन रेस से बाहर हो जाते है. साथ ही दिए हुए कॉन्ट्रैक्ट भी कैंसिल किए जा रहे हैं.

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