बस्तर जिले को केंद्र सरकार ने नक्सल मुक्त क्षेत्र घोषित करते हुए वहां नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण दी जा रही सारी सुविधाओं को व करोड़ों के ग्रांट को बंद कर दिया है। 2022 के बाद से ही कांकेर,कोंडागांव,बस्तर को पूर्ण, तथा सुकमा,बीजापुर, नारायणपुर को आज अखबारों की खबर के अनुसार आंशिक रूप से 2022 के बाद से नक्सलमुक्त क्षेत्र माना गया है। बस्तर की तो आज बाकायदा घोषणा हुई ,लेकिन अन्य ये क्षेत्र कब नक्सल मुक्त घोषित हुए यह समझ नहीं आया। अखबार में बाकायदा एक नक्शा प्रकाशित करते हुए यह बताने का प्रयास किया गया है कि नारायणपुर का आधा क्षेत्र ,बीजापुर का बड़ा भाग ,सुकमा का अधिकांश क्षेत्र, तथा कांकेर का आंशिक , कोंडा गांव, बस्तर का इलाका पूरी तरह से नक्सल मुक्त हो चुका है। शेष हैं तो नारायणपुर,सुकमा,दंतेवाड़ा,बीजापुर का कुछ हिस्सा है। जहां नक्सलियों की आमद रफ्त बनी हुई है। वे भी अब फ़ोर्स के घेरे में हैं। जिसके कारण ही केंद्र सरकार ने दावा किया है कि देश से 2026 मार्च तक नक्सलियों को समाप्त कर दिया जाएगा। नक्शे को सच माने तो हमारे प्रदेश में मात्र 30 प्रतिशत ही प्रभावित क्षेत्र बचा हुआ है। जिसे खाली करने के लिए हमारी फ़ोर्स दिनरात एक किये हुए है। हम सब को इस खबर से निश्चित ही खुश होना चाहिए। खाली कराए गए अनेक इलाकों में पुलिस कैम्प बनाने में सफलता हासिल की गई है। कुछ ऐसे इलाक़े भी खाली कराने में फ़ोर्स सफल हुई है, जिसमें कभी नसालियों का एकतरफा वर्चस्व हुआ करता था। यह कहा जा सकता है कि वहां शासन की पहुंच पकड़ तक नहीं थी। नक्सलियों का फरमान चलता था। आज प्रशासन की पकड़ है। कभी हम पर हावी नक्सली अपनी जान की खैर मनाते घने जंगलों में भागते फिरने व छुपने मजबूर हो गए हैं। अब हमारे जवान उन पर हावी हैं। बहुत हुई नक्सलियों की सुनवाई अब तो उनकी शांति की गुहार की कोई सुनवाई ही नहीं है। नक्सलियों की वार्ता के पांच प्रस्ताव को राज्य व केंद्र सरकार खारिज कर चुके हैं। अब राज्य व केंद्र सरकारें सख्त है। नक्सलियों के लिए एक ही बात बची है कि या तो चुपचाप बिना शर्त समर्पण करों या मरो या भागो। बस्तर इलाके को सम्पूर्ण नक्सल मुक्त करने का जिम्मा फ़ोर्स के 53000 जवानों ने उठा रखा है। शासन का पुलिस प्रशासन को सीधे आदेश हैं या तो समर्पण कराओ या मार गिराओ। अभी हाल एक अनुमान के अनुसार बस्तर इलाके के बीहड़ों में करीब 2000 नक्सली मौजूद हैं, जिसे सुरक्षा बलों ने घेर रखा है। कब कहां उन्हें मार गिराया जाए या समर्पण को मजबूर कर दिया जाए ,यह खबर कभी भी सामने आ सकती है। नक्सलियों के सामने अब इसके सिवाय कोई चारा नहीं दिखाई देता कि,या तो बिना शर्त समर्पण कर दें या बलों के द्वारा मरने तैयार रहें। नक्सल लीडर वासवराजु की मौत के बाद से नक्सलियों के सामने सक्षम नेतृत्व का भारी संकट पैदा हो गया है। दिशाविहीन नक्सली इधर उधर भटकने को मजबूर हो गए हैं। कोई रणनीतिक फैसला नहीं कर पा रहे हैं। क्या करें क्या ना करें इस उहापोह की स्थिति में हमारी फ़ोर्स से घिरे हुए अपनी भविष्य की दशा का इंतजार कर रहे हैं। नया समीकरण यह बना है कि जो ग्रामीण हमारी फ़ोर्स को देख कर भाग जाते थे आज वे ना सिर्फ फ़ोर्स का स्वागत कर रहे हैं बल्कि पूरा सहयोग भी करने आगे आ रहे हैं। अब नक्सली किसी भी गांव में खुले आम मीटिंग कर लेने से वंचित हो गए हैं। हर गांव में उन्हें अपने पराये की पहचान कठिन हो गई है। विश्वास का भारी संकट पैदा हो गया है। यही हमारी फ़ोर्स की ताकत बन गया है। नक्सलियों की एक एक गतिविधियों की फ़ोर्स को जानकारी हो रही है। घेरने में आसानी हो रही है। ग्रामीण युवाओं का नक्सलियों के प्रति आकर्षण कम ही नहीं लगभग खत्म सा हो गया है। यही आकर्षण अब फ़ोर्स के प्रति ज्यादा दिखाई दे रहा है। नक्सलियों का नेटवर्क लगभग खंडित हो गया है। हम हमारे प्रदेश को नक्सल मुक्त करने के बहुत ही करीब हैं। जरूरत अब है तो सिर्फ इस बात की है कि केंद्र व राज्य मिल कर डबल इंजिन की ताकत का इस्तेमाल करें। जहां जहां हम क्षेत्र को मुक्त कराते जा रहे हैं वहां वहां पूरी ईमानदारी के साथ भ्रष्टाचार मुक्त विकास कार्य तत्काल बिना देरी किये शुरू कर दें। पक्की सड़कें,नलजल,संचार,अस्पताल,राशन दुकानें ,स्कूल ,आश्रम,छात्रावास बनाना चालू हो जाए। इस पर सरकार के मुखिया स्वयं निगरानी रखें। अपने मंत्रिमंडल को भी कहें कि जब जब दौरे पर जाएं इस मुक्त क्षेत्रों की देखरेख पूरी ईमानदारी से करें। ईमानदारी का शब्द के इस्तेमाल का अर्थ यह है कि इन क्षेत्रों में यदि विकास कार्यों में भी भ्रष्टाचार हुआ तो फिर भगवान ही मालिक होगा।