छत्तीसगढ़ में अब तक विधानसभा चुनाव में नेता प्रतिपक्ष के चुनाव हारने का मिथक रहा है। इस मिथक के बवंडर में जो फंसा है उसकी नैया डूबने से कोई नहीं rolex rolex watches रोक सका है। चौथी विधानसभा में इस बार एक ऐसी ही चुनौती सत्ता पक्ष की ओर से नेता प्रतिपक्ष को मिली है।
चौथी विधानसभा के शीतकालीन सत्र में वाणिज्य Breitling replica watches कर मंत्री अमर अग्रवाल ने सदन में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव पर टीका टिप्पणी करते हुए वो मिथक याद दिलाया जिसके तहत अविश्वास प्रस्ताव लेकर आनो वाला हर नेता प्रतिपक्ष अपनी सीट खो replica watches uk बैठा है। उनके इस बयान से एक बार फिर राजनीतिक गलियारों में चुनाव हारने वाले नेता प्रतिपक्षों की चर्चा तेज हो गई है। पूर्व में महेंद्र कर्मा और फिर रविंद्र चौबे अविश्वास प्रस्ताव लाए थे और वे आउट हो गए।
पहली विधानसभा में अजीत जोगी सरकार के खिलाफ नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय ने 30 सितंबर 2002 को पहला अविश्वास प्रस्ताव लाए थे, फिर 2003 में उनका पत्ता कट गया। उस समय मिथक को लेकर ऐसी कोई धारणा ने जन्म नहीं लिया था। दूसरी विधानसभा में रमन सिंह की सरकार के खिलाफ नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए और 2007 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उस समय भी इस तरह की कोई मिथक कहानी नहीं गढ़ी गई, लेकिन इस हार के मिथक पर तीसरी विधानसभा में तब मोहर लगी जब नेती प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे भी हारे। तबसे लेकर आज तक यही माना जाता है, जो अविश्वास प्रस्ताव लेकर आता है उसको अपनी कुर्सी का दान देना ही पड़ता है।