भारत आज अपना 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। 26 जनवरी 1950 के दिन संविधान को अंगीकृत किया था। देश-दुनिया में एक लिखित या अलिखित संविधान के मार्गदर्शन में देश की व्यवस्था को चलाने की संकल्पना 18-19वीं शताब्दी में आयी। इसे संविधानवाद कहा गया। भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ और अपना लिखित संविधान बनाया। जबकि ब्रिटेन का संविधान लिखित नहीं है। भारत में प्राचीनकाल से संविधान की व्यवस्था रही है, भले ही उस समय का संविधान लोकतांत्रिक गणराज्य न होकर राजतंत्रात्मक था। मौर्य वंश के राज्य का संचालन कौटिल्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र के आधार पर होता था। इसी तरह गुप्तकाल में राज व्यवस्था का संचालन कामंदक रचित नीति सार के आधार पर होता था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश के महापुरुषों ने आधुनिक व्यवस्था और आवश्यकता की दृष्टि से एक लिखित संविधान का निर्माण करने का निर्णय लिया। भारत का संविधान जनता को मौलिक अधिकार देता है। यह मौलिक अधिकार उसके सर्वांगीण विकास के लिए सहयोग करता है। संविधान वैसे तो देश को राज्यों का संघ कहता है लेकिन संचालन में देश की व्यवस्था परिसंघात्मक है। इसमें केंद्र और राज्य दोनों स्वायत्त होकर संविधान द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर अपना-अपना काम करते है। राज्यों में राज्यपाल भी एक ऐसी संस्था है जो राज्य में संवैधानिक कार्यों का कुशल संचालन करती है। हाल के वर्षों में राज्य के निर्वाचित सरकार और राज्यपाल के बीच तनावपूर्ण संबंध देखे जा रहे है। पश्चिम बंगाल में, केरल, तमिलनाड और छत्तीसगढ़ में इस तरह की परिस्थिति बन रही है। छत्तीसगढ़ में आरक्षण का कोटा बढ़ाने के लिए पारित विधेयक पर राज्यपाल के हस्ताक्षर को लेकर मंत्रिपरिषद व राजभवन के बीच तनाव की स्थिति है। वैसे तो 1970 का दशक केंद्र-राज्य संबंध सबसे तनावपूर्ण रहे और बार-बार राज्यों की चुनी हुई सरकार को केंद्र में भंगकर राष्ट्रपति शासन लगाया। पिछले 2-3 दशकों में कम से कम वैसी स्थिति नहीं है। केंद्र और राज्य में अलग-अलग निर्वाचित सरकार होने के कारण यह स्थिति हाल-फिलहाल बन रही है। संविधान की दृष्टि से यह सही नहीं है। राज्यों की चुनी हुई सरकारें ऐसा मान सकती है कि जनता ने उन्हें अधिकार देकर सत्ता में बिठाया है। लेकिन संविधान राज्यपाल को भी एक विशेष अधिकार देकर जनता के अधिकारों के संरक्षक और उसके कल्याण के लिए राज्यों में नियुक्त करने की व्यवस्था की है। राज्यपाल जैसी संस्था पर आक्रमण संवैधानिक व्यवस्था पर आक्रमण है। भारतीय राजनीति से देश का विकास तभी होगा जब व्यवस्थाएं सुचारु रुप से चलेंगी और इसके लिए संविधान का सम्मान करना आवश्यक है।