Home इन दिनों आर्थिक कॉरिडोर से गरीबों को क्या मिलेगा?

आर्थिक कॉरिडोर से गरीबों को क्या मिलेगा?

261
0

भारत ने जी20 का सफल आयोजन कर पूरी दुनिया में अपनी धाक जमा दी है। इंडिया, मिडिल ईस्ट से लेकर यूरोप तक जाने वाले रेल-समुद्री यातायात कॉरिडोर के निर्माण पर सदस्य देशों की सहमति को इस बैठक की सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिना जा रहा है। लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न है कि इस कॉरिडोर के बनने से यूपी-बिहार या तमिलनाडु और केरल के सुदूर इलाकों में काम करने वाले किसानों-गरीबों को इससे क्या लाभ मिलेगा? एपीडा के आंकड़ों के अनुसार भारत ने वर्ष 2022-23 में 13,185 करोड़ रुपये मूल्य की फल-सब्जियों का निर्यात किया था। इसमें 6219 करोड़ रुपये से ज्यादा के फल और 6965 करोड़ रुपये से अधिक की सब्जियां शामिल थीं। प्रोसेस्ड फूड और दालों को मिलाकर यह आंकड़ा 18 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा था। भारत आम, केला और पपीता जैसे फलों के उत्पादन में दुनिया में नंबर एक पर है, लेकिन इसके बाद भी हमारी फलों-सब्जियों के निर्यात में वैश्विक हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम है। इसका बड़ा कारण यह है कि हमारे देश में फलों-सब्जियों को रखने और उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए अच्छी गुणवत्ता की और सस्ती दरों पर उपलब्ध कोल्ड स्टोरेज चेनों की भारी कमी है। वैश्विक व्यापार के लिए यह कमी और ज्यादा हो जाती है। फलों-सब्जियों के देरी से बाजार में पहुंचने से व्यापारियों को भारी नुकसान होने की संभावना लगातार बनी रहती है। चूंकि, कहा जा रहा है कि इस कॉरिडोर के निर्माण से यूरोपीय बाजारों में पहुंचने वाले फलों-सब्जियों के पहुंचने में 40 फीसदी का समय कम लगेगा, इससे भारतीय उत्पादों के यूरोपीय बाजार तक पहुंचने में इनके न खराब होने की दर बढ़ जाएगी। इसका सीधा लाभ भारतीय किसानों को मिलेगा। यूरोप भारत के कुल कारोबार का तीसरा सबसे बड़ा साझीदार है। वर्ष 2021 में भारत के कुल व्यापार का लगभग 10.8 फीसदी व्यापार यूरोपियन यूनियन के साथ हुआ था। अमेरिका के 11.6 फीसदी और चीन के 11.4 फीसदी की व्यापारिक हिस्सेदारी होने के बाद भी यूरोप भारत के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसका बड़ा कारण है कि भारत यूरोपीय देशों को कृषि उत्पादों, फलों-सब्जियों, कपड़ों और दवाओं का निर्यात करता है, जिसके कारण उसका निर्यात पक्ष यूरोप में बहुत संतुलित है, जबकि चीन से भारत ज्यादातर वस्तुएं आयात करता है और व्यापारिक असंतुलन बुरी तरह चीन के पक्ष में झुका हुआ है। भारतीय उत्पादकों से यूरोप के बाजारों तक पहुंचने में अलग-अलग देशों की भौगोलिक स्थिति के अनुसार अभी 30 से 45 दिन तक का समय लगता है। जबकि अनुमान है कि मुंबई से शुरू होने वाले 6000 किलोमीटर लंबे इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर बनने से यह समय 12 से 15 दिन तक कम हो जाएगा। समय के साथ खराब होने वाले कृषि, फल-सब्जी और डेयरी उत्पादों के संदर्भ में यह समय बहुत महत्त्वपूर्ण है।

fake breitling uk
replica Omega watches
rolex replica watches