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झीरम घाटी हत्याकांड की जांच पर जांच

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देश की राजनीति में 25 मई 2013 को झीरम घाटी में कांग्रेस पार्टी के काफिले पर हुआ हमला अभूतपूर्व और ऐतिहासिक था। माओवादी के इस हमले में तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, महेन्द्र कर्मा सहित 28 नेता शहीद हो गए थे। इस घटना के तत्काल बाद डॉ रमन सरकार ने हाईकोर्ट के न्यायाधीश प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया था। इस बात को 10 वर्ष होने आए है लेकिन जांच पूरी नहीं हो सकी है और इसलिए इस हत्याकांड में शामिल हत्यारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। वैसे तो न्यायिक जांच के समानांतर तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एनआईए जांच भी शुरु कराई थी जिसने अपनी रिपोर्ट 2014 में दे दी थी। इस रिपोर्ट में घटना से संबंधित तथ्य और शामिल आरोपियों के नाम भी दर्ज है। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने एनआईए की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया। उनका आरोप है कि एनआईए ने इस हत्याकांड की जांच में गंभीरता नहीं दिखाई और अनेक साक्ष्य और गवाहों पर गौर नहीं किया। दरअसल मामले की जांच तो एक विषय है लेकिन प्रदेश में झीरम घाटी कांड एक राजनीतिक विषय बनकर रह गया है। हत्याकांड के तत्काल बाद इसके पीछे की साजिशों को लेकर राजनेताओं पर भी उंगलियां उठीं। लेकिन कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं हुआ। तब से लेकर अब तक कांग्रेस पार्टी तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार को झीरम घाटी का दोषी मानती है। एनआईए की रिपोर्ट को खारिज करने के बाद न्यायमूर्ति प्रशांत मिश्रा की रिपोर्ट भी नवम्बर 2021 में राजभवन को दे दी गई। आयोग ने 8 वर्षों तक सुनवाई करने साक्ष्य एकत्र करने के बाद 4,184 पृष्ठ की रिपोर्ट राज्यपाल अनुसुइया उइके को सौंपी गई थी। इस रिपोर्ट पर भी कांग्रेस पार्टी की सरकार को आपत्ति थी और इस प्रक्रिया को परंपराओं के विरुद्ध बताते हुए नवम्बर 2021 को भूपेश सरकार ने एक नया जांच आयोग बिठा दिया जिसमें 2 न्यायाधीशों को नियुक्त किया गया। 11 नवम्बर को जारी आदेश में नए जांच आयोग के द्वारा 6 माह के भीतर जांच पूरी कर शासन को रिपोर्ट सौंपने की बात की गई थी। अब आयोग के गठन के बाद 6-6 माह के तीन कार्यकाल पूरे होने के आए, ऐसी स्थिति में शासन ने एक बार फिर इस जांच आयोग के कार्यकाल को अगस्त 2023 तक के लिए बढ़ा दिया गया है। अब सवाल यह है कि कांग्रेस पार्टी झीरम घाटी के सच को बाहर लाने में क्या वाकई गंभीर है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस और उनके नेता ऐसी रिपोर्ट चाहते है जो किसी दल या व्यक्ति के खिलाफ हो, ऐसा नहीं होने पर जांच पर जांच कराई जा रही है।