सपा ने धर्म के खिलाफ जातियों को खड़ा करने का जो राजनितिक दांव चला था उसका परिणाम भी सामने आ गया जब बुधवार को अयोध्या के एक संत महंत राजूदास और और स्वामी प्रसाद मौर्य एक दूसरे से भिड़ गये। लखनऊ में एक निजी टीवी चैनल के कार्यक्रम में दोनों ने एक दूसरे से हाथापाई शुरु कर दी। स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब रामचरित मानस की निंदा की थी तब महंत राजूदास ने स्वामी प्रसाद मौर्य को दंड देने का ऐलान किया था। वैसे तो दोनों जुबानी जमा खर्च कर रहे थे लेकिन जब दोनों का आमना सामना हुआ तो हाथापाई पर उतर आये। यही तो सपा की सारी योजना का हिस्सा था कि धर्म के खिलाफ जातीय नेता लड़ते हुए दिखें, और वैसा हो भी गया। समाजवादी पार्टी सत्ता से बाहर है। उसका यादव प्लस मुस्लिम वाला फार्मूला दो चुनाव से सफल नहीं हो पा रहा है। वह इसलिए क्योंकि भाजपा की हिन्दुत्ववादी राजनीति के कारण पिछड़े वर्ग की जातीय गोलबंदी भी कुछ हद तक टूटी है। ऐसे में सपा की रणनीति ये है कि अगर जातियों को धार्मिकता के खिलाफ खड़ा कर दिया जाए तो उसकी स्थिति मजबूत हो सकती है। इस मुहिम की शुरुआत यूपी में बसपा, भाजपा होते हुए सपा में पहुंचे स्वामी प्रसाद मौर्य ने की। उन्होंने हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ रामचरित मानस को जातीय वैमनस्य पैदा करनेवाला बताया। एक तरफ समाजवादी पार्टी ने स्वामी के बयान को निजी बताकर पल्ला झाड़ लिया, दूसरी ओर उन्हें खुली छूट दी गई कि वह रामचरित मानस की चौपाई के जरिए जातीय भेद को हवा देते रहें, ताकि गैर-यादव पिछड़े एवं गैर-जाटव दलित अस्मिता के नाम पर सपा से जुड़ें। वहीं भाजपा में भी जल्द ही सांगठनिक फेरबदल होने वाला है। यहां भी पिछड़े एवं दलितों को प्रमुखता दिये जाने की तैयारी है। भाजपा ने जाट समुदाय से आने वाले भूपेंद्र चौधरी को अध्यक्ष बनाकर पहले ही बिसात बिछा दी है। बीते चार लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो भाजपा ब्राह्मण अध्यक्ष के चेहरे के साथ मैदान में उतरती रही है, लेकिन इस बार पिछड़े पर दांव खेला है। ऐसा करने के एवज में अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर पुरस्कार भी दे दिया है। दूसरी तरफ, भाजपा अपनी किलेबंदी मजबूत करने के लिये पार्टी में होने वाले न्यूनतम बदलावों में पिछड़े एवं दलित वर्ग को प्रमुखता देने की तैयारी में है। इसी क्रम में सुभासपा को भी साथ लाने की तैयारी है। भाजपा नेतृत्व की बात ओम प्रकाश राजभर से चल रही है, जो विधानसभा चुनाव में खास रणनीति के तहत सपा गठबंधन में चले गये थे। संभावना है कि लोकसभा चुनाव से पहले ओम प्रकाश राजभर भाजपा खेमे में चले आयेंगे।
सपा भी भाजपा की रणनीति का जवाब देने के लिये मंडल के दौर के जातीय विभाजन को हवा दे रही है, जिसका नेतृत्व कर रहे हैं स्वामी प्रसाद मौर्य, जो नवबौद्ध बन चुके हैं। मौर्या अब हिंदू धर्म से दूर हो चुके हैं, लिहाजा सपा जरूरत पडऩे पर उन्हें बौद्ध बताकर किनारा करने का विकल्प भी खुला रखेगी। सपा के भविष्य की सियासत की झलक अखिलेश ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी गठन में ही जाहिर कर दी थी। राष्?ट्रीय कार्यकारिणी में पिछड़े-दलित एवं मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के साथ सवर्णों की संख्या सीमित कर अलिखेश ने नई रणनीति के संकेत दे दिये थे। यह अलग बात है कि कुछ दबावों के बाद ओमप्रकाश सिंह एवं अरविंद सिंह गोप को शामिल करना पड़ा।