पूर्वोत्तर के 3 राज्यों त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय के विधानसभा चुनाव के परिणाम लगभग साफ़ हो गए हैं। चुनाव परिणाम वैसे ही आए हैं जैसी उम्मीद थी। त्रिपुरा और नगालैंड में भाजपा की वापसी तय हो गई है। मेघालय में मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की एनपीपी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। त्रिपुरा में शाही वंशज प्रद्योत देवबर्मा के नेतृत्व में टिपरा मोथा ने बेहतर प्रदर्शन किया है। टिपरा मोथा 13 सीटें जीतने में सफल रही। टिपरा मोथा ने त्रिपुरा में भाजपा के सहयोगी दल को भारी नुकसान पहुंचाया लेकिन भाजपा को सत्ता में आने से नहीं रोक पाई। तीनों राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी सीटों पर जीत गए है। त्रिपुरा में माणिक साहा ने पश्चिम त्रिपुरा की नगर बरदोवाली, मेघालय में कॉनराड संगमा ने वेस्ट गारो हिल्स की दक्षिण तुरा (एसटी) सीट से और नगालैंड में नेफ्यू रियो को कोहिमा की नॉर्दन अंगामी एसटी सीट पर जीत मिली। इस चुनाव की एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि नागालैंड में पहली बार कोई महिला चुनाव जीती है। हेकानी जाखालू दीमापुर सीट जीतकर नगालैंड की पहली महिला विधायक बन गई हैं। 1963 में नगालैंड राज्य बना, तब से अब तक कोई महिला विधानसभा चुनाव नहीं जीती थी। नार्थ ईस्ट के राज्यों में मोदी और शाह के उदय के बाद भाजपा ने जिस तरह से पसीना बहाया है वह बताता है कि मोदी और शाह के लिए कोई भी राज्य छोटा नहीं है। मोदी और शाह जैसे रणनीतिकार छोटे राज्यों से भी बड़ा फायदा निकालने में माहिर है। यही कारण है कि हर चुनाव को जीवन मरण का प्रश्न मानने वाली भाजपा ने इन तीनों राज्यों में पूरी पार्टी उतार कर ताकत से चुनाव लड़ा। भाजपा यह संदेश देना चाहती थी कि वह सिर्फ हिंदीभाषी राज्यों की पार्टी नहीं है। देशभर में उसके कार्यकर्ता हैं। लंबे समय से जिन राज्यों में वामदलों और कांग्रेस की सरकार थी, वहां अपनी लगातार दूसरी बार सरकार बनाना इसी बात की ओर इशारा करता है। भाजपा ने यह साफ कर दिया है कि विपक्ष उसे सिर्फ हिंदू बाहुल्य वाले क्षेत्र की पार्टी समझने की भूल न करें। क्रिश्चियन बाहुल्य नार्थ ईस्ट के इन राज्यों में भाजपा की जीत का यही संकेत है। फरवरी महीने में ही प्रधानमंत्री ने तीन बार इन राज्यों का दौरा किया था। गृहमंत्री अमित शाह, और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कई बड़े नेता लगातार यहां जाते रहे हैं। प्रधानमंत्री 2017 के बाद से 47 बार नार्थ-ईस्ट जा चुके हैं। चुनाव से पहले उन्होंने त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में 3 बड़ी रैलियां कीं। नार्थ-ईस्ट के 8 राज्यों में हर 15 दिन में कोई न कोई केंद्रीय मंत्री जरूर पहुंचता है।
अरुणाचल प्रदेश में 2003 के एक अपवाद को छोड़ दें, तो 2016 तक नार्थ ईस्ट के किसी राज्य में भाजपा सत्ता में नहीं रही। 2003 में कुछ महीनों के लिए गेगोंग अपांग भाजपा में शामिल हो गए थे। तब वे अरुणाचल के मुख्यमंत्री थे।
इससे उलट आज यहां के 8 में से 6 राज्यों में भाजपा सत्ता में है। असम, त्रिपुरा, अरुणाचल और मणिपुर में भाजपा के मुख्यमंत्री हैं। नगालैंड और मेघालय में भाजपा सत्ताधारी गठबंधन में शामिल हैं। मिजोरम और सिक्किम में तनाव है, लेकिन इन दोनों राज्यों में सरकार चला रहीं पार्टियां भाजपा की अगुआई वाले नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस में शामिल हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों के नतीजों से भी जाहिर है कि नार्थ ईस्ट में एक केंद्रीय राजनीतिक शक्ति के रूप में भाजपा ने कांग्रेस और वाम दलों को अप्रासंगिक बनाकर उनकी जगह ले ली है। 2014 में भाजपा को नार्थ ईस्ट की 32त्न सीटों पर कामयाबी मिली थी। 2019 में यह आंकड़ा 56त्न हो गया। एक बात गौर करने लायक़ है कि नार्थ ईस्ट के 8 राज्यों में कुल 25 लोकसभा सीटें हैं। भाजपा के पास इनमें से 14 सीटें हैं। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। अगर हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा की कुछ सीटें कम होती हैं, तो वह इन राज्यों में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर उसकी भरपाई करना चाहेगी। राज्यसभा में भी नार्थ ईस्ट के इन राज्यों से 14 सीटें हैं। इनमें से 8 भाजपा के पास हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा का बेहतर प्रदर्शन भी उसे राज्यसभा में मज़बूती देगा।