Home इन दिनों गरीबों के राशन पर अमीरों की नजर

गरीबों के राशन पर अमीरों की नजर

77
0

भारत जब स्वतंत्र हुआ तब अंग्रेजों ने इस देश का इतना अधिक शोषण किया था कि देश की 70 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती थी। दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी और अकाल पडऩे के कारण बड़ी संख्या में भूख से लोगों की मौत हो जाया करती थी। स्वतंत्रता के बाद देश ने प्रगति की। खेती, किसानी में प्रगति हुई। देश में खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ा और इससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए गरीब लोगों को सस्ती दरों पर अनाज मिलने लगा। तब से लेकर आज तक राशन दुकानों से अनाज की चोरी कोई नई बात नहीं है। वैसे भी गरीबी दूर करने के लिए जितनी योजनाएं बनती है, उससे गरीबों का कितना भला होता है यह कहना मुश्किल है लेकिन व्यापारियों, उद्योगपतियों, नेताओं और अधिकारियों की जेब में मोटी रकम चली जाती है। छत्तीसगढ़ में 2007 में डॉ. रमन सिंह की सरकार ने 3 रु. किलो की दर से गरीब परिवार को 35 किलो चावल देने की योजना शुरु की थी। जैसे-जैसे गरीबों को ज्यादा फायदा होने लगता है, वैसे-वैसे ऐसी योजनाओं में धांधली की संभावना बढ़ती जाती है। गरीबों को मिलने अनाज में कोई गड़बड़ी न हो इसके लिए डॉ. रमन सरकार ने अनेक प्रयोग किए थे। इन प्रयोगों को राष्ट्रव्यापी प्रसिद्धि भी मिली थी। 2018 के अंत में जब सरकार बदली तो नई सरकार ने भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कुछ संशोधन किए। इसमें सबसे महत्वपूर्ण गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों के अलावा गरीबी रेखा के ऊपर वाले परिवारों को भी सस्ता अनाज देने की योजना शुरु हुई। कोरोना के समय पीडीएस के जरिए गरीबों को मिलने वाले अनाज में केंद्र सरकार के ओर से भी गरीब कल्याण योजना के तहत 5 किलो प्रति व्यक्ति के हिसाब से चावल दिए जाने लगा। यही से प्रदेश की पीडीएस व्यवस्था में गड़बडिय़ां शुरु हुई। विधानसभा में विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने सोमवार को आरोप लगाया कि सरकार ने पिछले दो-तीन वर्षों में 1 हजार करोड़ रुपए के चावल की अफरा-तफरी की है। ऐसा ही आरोप डॉ. रमन सिंह ने भी प्रश्नकाल के दौरान लगाया था। दरअसल मामला राशन दुकानों में शेष बचे चावल, शक्कर, चना, नमक और गुड़ के स्टाक और खाद्य विभाग के पोर्टल में दिखाए जाने वाले स्टाक के अंतर से बवाल खड़ा हुआ है। वैसे तो पीडीएस आदेश नियंत्रक 2016 के तहत एक व्यवस्था बनी है कि शेष बचे अनाज को राशन दुकानदार अगले माह के आबंटन में एडजस्ट करेगा। लेकिन 2022 से ही मामला खुलकर सामने आया। ऐसा लगता है कि गरीबी रेखा के ऊपर वाले परिवारों ने राशन दुकानों से राशन नहीं लिया। जबकि खाद्य विभाग राशन कार्ड के हिसाब से आबंटन करता रहा, जो राशन बटा संभवत: उसे खुले बाजार बेच दिया गया। विपक्ष का आरोप है कि खाद्य विभाग ने सितंबर 2022 में स्टाक की जांच की थी, जिसमें प्रदेश की कुल राशन दुकानें 13391 में से केवल 18 को छोड़ दें तो शेष के पास 96 हजार मीट्रिक टन चावल बचा हुआ था, जबकि विभाग के पास इस स्टाक की मात्रा 1 लाख 65 हजार मीट्रिक टन से अधिक की थी। इस हिसाब से लगभग 69 हजार मीट्रिक टन चावल का अंतर मिला। अब इस बात को लेकर विपक्ष सरकार पर 1 हजार करोड़ रुपए के चावल के घोटाले का आरोप लगा रहा है। अभी तक कांग्रेस पार्टी पूर्व की रमन सरकार पर नान घोटाले के आरोप लगाती रही। नान घोटाले को लेकर भूपेश सरकार ने एसआईटी भी बनाई है, लेकिन चार साल हो गए अभी तक कोई परिणाम नहीं आया। उल्टे जिन दो बड़े अधिकारियों पर नान घोटाले के आरोप लगे थे। और कार्यवाही हुई थी, वे अभी भूपेश सरकार में ताकतवर अधिकारी बने हुए है। इधर ईडी नान घोटाले के दोषी अधिकारियों को बचाने का आरोप भूपेश सरकार पर मढ़ रही है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में ईडी ने नान घोटाले की सुनवाई छत्तीसगढ़ के बाहर किसी अन्य राज्य में कराने का आग्रह किया है। कुल मिलाकर अनाज के घोटाले की एक फाईल बंद हुई नहीं है कि दूसरी फाइल खुल गई है। अब चुनाव तक कांग्रेस और भाजपा दोनों एक दूसरे पर इस मामले को लेकर आरोप लगाते रहेंगे।