छत्तीसगढ़ में कोयला, शराब, धान के कारोबार में अफरा तफरी में संलिप्त होने की आशंका के मद्देनजर प्रवर्तन निदेशालय (ईड़ी) लगातार छापामारी कर रहा है। यह सिलसिला प्रति टन 25 रु. की दर से कोयले के कारोबार में अवैध वसूली करने के आरोपियों पर कार्रवाई करने से शुरु हुआ था। घोटाले का एक सिरा का क्या मिला, उस सिरे को लेकर ईडी पूरे प्रदेश में अधिकारी, राजनेता, कारोबारी, जमीन दलाल, यहां तक छोटे-छोटे कर्मचारियों तक पहुंच चुका है। अभी तक एक आईएएस अधिकारी समीर बिश्नोई मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ रहीं सौम्य चौरसिया सहित आधा दर्जन से अधिक जेलों में बंद हैं। जमानत के आवेदन तो लगाए जा रहे हैं लेकिन जमानत मिल नहीं रही है। ऐसा सुनने में आ रहा है कि जो सबूत ईडी ने इकट्ठे किए हैं, उनका परीक्षण गिरफ्तार संदेहियों से किया जा रहा है और इससे ही नए-नए नाम और ठिकाने निकलकर सामने आ रहे हैं। विधानसभा चुनाव को अब मात्र 6 महीने रह गए हैं। ऐसी स्थिति में ईडी की निरंतर कार्रवाई से राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मचा हुआ है। ऐसी लग रहा है कि मानो एक फाइल के खुलते ही दूसरी फाईलों के राज पर्दाफाश हो रहे हैं। कोयले के गोरखधंधे से शुरु हुई कार्रवाई अब शराब के कारोबार तक पहुंच चुकी हैं। संभव है इस बीच धान की मिलिंग और चावल को लेकर भी गड़बड़ी की शिकायत हो रही है। संभव है ईडी की जांच उन क्षेत्रों तक भी पहुंच जाए। प्रदेश में एक और महत्वपूर्ण मामला है, जो हाईप्रोफाइल भी है और उसकी चर्चा बहुत अधिक नहीं हो रही है वह मामला महादेव एप से जुड़ा हुआ है। चर्चा तो यह भी है कि ईडी की जांच महादेव एप तक भी पहुंच सकती है। रोचक बात यह है कि ईडी जिन-जिन लोगों कार्रवाई कर रही है, उनमें हर तबके से जुड़े लोग शामिल हैं। इसी बात को लेकर मुख्यमंत्री ने टिप्पणी भी की है कि वैसे तो कांग्रेस पार्टी शुरु से ही ईडी की कार्रवाई को भाजपा द्वारा प्रायोजित बात रही है, साथ ही कांग्रेस पार्टी के स्थानीय नेता ईडी जहां छापा मारता है वहां विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं। इसका मतलब है कि कांग्रेस पार्टी ईडी के मुद्दे को चुनाव में मुद्दा बनाने का प्रयास कर रही है। सवाल यह है कि कांग्रेस अगर ईडी के छापों को मुद्दा बनाती है तो इससे चुनाव में फायदा होगा या नुकसान? यह बात तो स्पष्ट है कि ईडी जिन मामलों को उठा रहा है, उसमें गड़बडिय़ों के सबूत भी मिल रहे हैं। करोड़ों-अरबों रुपये की हेराफेरी की गई है। ठीक है कि भ्रष्टाचार करने वाले किसी पार्टी विशेष के लोग ही नहीं है इसलिए भाजपा के नेताओं पर ईडी की कार्रवाई नहीं होना संशय पैदा तो करता है, लेकिन जिनके खिलाफ कार्रवाई हो रही है क्या वे दूध के धुले हैं? जो भी है वह तो जांच के बाद न्यायालय में तय होगा।