मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार ने प्रदेश में विभिन्न वर्गों को जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने के लिए विधानसभा में एक विधेयक पारित कराया है। इस विधेयक के अनुसार अनुसूचित जनजाति वर्ग को 32 प्रतिशत, ओबीसी को 27, अनुसूचित जाति को 13 और ईडब्ल्यूएस को 4 प्रतिशत देने का प्रावधान किया गया है। यह विधेयक अभी राज भवन से अनुमति की प्रतीक्षा में अटका हुआ है। इधर मुख्यमंत्री ने सोमवार को एक पत्र लिखकर प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा द्वारा पारित आरक्षण संशोधन विधेयक को संविधान की 9वीं अनुसुची में शामिल किया जाए। इस प्रश्न के बाद आरक्षण कोटे को लेकर भ्रम और गहरा गया है। एक बात तो तय है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव को 8 महीने का समय भी नहीं बचा है। ऐसी स्थिति में आरक्षण कोटे में बढोत्तरी का लाभ कांग्रेस पार्टी को चाहिए तो किसी हाल में विधेयक को स्वीकृत कराकर लागू कराना होगा। कांग्रेस को इस बात का भी भय है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो चुनाव में नुकसान हो सकता है। गत वर्ष सितंबर में प्रदेश में लागू 58 प्रतिशत आरक्षण कोटा और तृतीय चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती के लिए अनुसुचित क्षेत्रों में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण के प्रावधान को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। इस बात से प्रदेश के जनजातिय युवाओं में खासी नाराजगी हुई थी। यह नाराजगी कोटा नहीं बढऩे के कारण चुनाव में बरकरार रह सकती है। वैसे अभी पिछले छ: महीनों से नई भर्ती के लिए विज्ञापन शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश परीक्षा और अनेक संपन्न हुई परीक्षाओं के परिणाम पर रोक लगी हुई है। इस वजह से भी युवा परेशान और नाराज है। राज्यपाल आरक्षण विधेयक पर कोई निर्णय लेने से पहले सर्वोच्च न्यायालय में लंबित इस मामले की सुनवाई और निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे है। दूसरी ओर विधानसभा ने भी पारित आरक्षण कोटा कानून को संविधान की 9वीं अनुसुची में डालने का अशासकीय संकल्प पारित किया है। अब मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री को इस बारे में पत्र लिखना समझ से परे है। कुछ दिन पूर्व मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री से मिलने दिल्ली गए थे और बताया गया कि दोनों के बीच अनेक विषयों पर बात भी हुई लेकिन प्रधान मंत्री से बात करते हुए क्या मुख्यमंत्री ने प्रदेश के आरक्षण विधेयक के संबंध में कोई चर्चा की थी क्या? देशभर में किसी भी राज्य को आरक्षण कोटा 50 प्रतिशत से अधिक करने की अनुमति नहीं है। मुख्यमंत्री ने पत्र में ईडब्ल्यूएस वर्ग को 10 प्रतिशत का कोटा देने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को आधार बनाकर प्रधानमंत्री से प्रदेश में कोटा बढ़ाने का अनुरोध किया है,जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने ईडब्ल्यूएस के 10 प्रतिशत कोटा को सामान्य वर्ग के अधीन रखा है। प्रदेश में अगर गरीबी बहुत ज्यादा है तो यह राज्य द्वारा गठित क्वंटीफायबल डेटा आयोग की रिपोर्ट में भी प्रकट हुई होगी, अगर ऐसा है तो पारित विधेयक में ईडब्ल्यूएस का कोटा केवल 4 प्रतिशत क्यों रखा गया? उसे 10 प्रतिशत किया जाना था। कुल मिलाकर प्रदेश में आरक्षण कोटे को लेकर राजनीति हो रही है और इससे युवा बेरोजगार भ्रम की स्थिति में है। इस भ्रम को दूर करना जरूरी है नहीं तो इसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ सकता हैं।