Home मेरी बात माफिया-डॉन बनने की चाहत!

माफिया-डॉन बनने की चाहत!

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जब कोई व्यक्ति अपनी किसी विशिष्ट प्रतिभा के कारण समाज में अपनी पहचान नहीं बना पाता, तो वह दूसरे तरीके से समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है। कोई साहित्यकार, पत्रकार कलाकार, चित्रकार , वैज्ञानिक, शिक्षक आदि अपनी रचनात्मक प्रतिभा के बलबूते समाज में उपस्थित होता है, लेकिन जिनके पास ऐसे कौशल नहीं होते, लेकिन उनके मन में भी एक चाहत होती है कि लोग उनको भी जानें, इसलिए वे अपराध जगत में प्रवेश करके अपनी पहचान बनाने की कोशिश करते हैं । हम सब ने देखा है कि किसी भी शहर में दो तरह के लोग पाए जाते हैं । एक को उनकी रचनात्मकता के लिए पहचाना जाता है और दूसरे वे लोग होते हैं, जिनको उनकी गुंडागर्दी के कारण जाना जाता है। अनेक शहरों में माफिया किस्म के लोग होते हैं, जो अपनी हरकतों के लिए (प्रख्यात तो नहीं कहेंगे) कुख्यात होते हैं। कुछ लोग इसी बात को लेकर मगन होते हैं कि समाज में उनका भय व्याप्त है। ये लोग पकड़े जाने पर पुलिस द्वारा बुरी तरह पीटे जाते हैं। जेल भेज दिए जाते हैं ।बाद में इनकी जमानत भी हो जाती है। बाहर आ जाते हैं, फिर गुंडागर्दी करते हैं ।रंगदारी करते हैं। फरार रहते हैं। फिर अचानक शहर में दिखाई देंगे ।गुंडागर्दी करके वसूली करेंगे। किसी के लिए सुपारी ले कर उस की हत्या कर देंगे। किसी को पीट देंगे । धीरे धीरे बहुत बड़े अपराधी के रूप में शहर में पहचाने जाने लगते हैं । कोई इन्हें दादा कहता है ।कोई भाईजान कहता है ।कोई उस्ताद कहता है। लोग इन्हें देख कर मुस्कुराते भी हैं और यह भी कोशिश करते हैं कि ईन से दूरी बनाकर रखी जाए । हमारी कानून व्यवस्था इतनी लचर है कि कई बार उनकी लापरवाही के कारण भी बड़े-बड़े अपराधी पनपते हुए कब मछली से मगरमच्छ बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता। और जब यह समाज के बड़े सिरदर्द बन जाते हैं, तब पुलिस उनको खोजती है और जब कभी पुलिस और गुंडों का आमना-सामना होता है, तो स्वाभाविक है मुठभेड़ होती है । मुठभेड़ में कभी-कभी अपराधी बुरी तरह मारा भी जाता है। यह सिलसिला लगातार चल रहा है ।
पिछले दिनों माफिया डान अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को तीन युवकों ने गोलियों से भून दिया। सिर्फ इसलिए कि वे भी माफिया के रूप में अपना नाम कमा सकें । यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि इन युवकों ने नाम कमाने के लिए अपराध का रास्ता चुना। इनका जो आपराधिक इतिहास सामने आया है, वह बताता है कि ये लोग घर से भी बेदखल थे ।और बाहर रहकर ही आपराधिक गतिविधियों में संलग्न रहते थे। अभी तीनों हत्यारे जेल में बंद है। अब इनकी सजा कितने साल की होती है, यह तो बाद में पता चलेगा। अगर ये आजीवन कारावास भी काटते हैं तो पन्द्रह बीस साल बाद छूट जाएंगे ।तब भी ये जवान ही रहेंगे । चालीस साल के आसपास। तब ये अपने इलाके के यह बहुत बड़े डॉन के रूप में पहचाने जाएंगे ।और कोई बड़ी बात नहीं कि माफिया के रूप में ये चुनाव लड़े और जनप्रतिनिधि भी बन जाएँ। हमारा लोकतांत्रिक सिस्टम अभी तक सुधर नहीं सका है । आपराधिक मामलों में संलिप्त रहने वाले अनेक लोगों को सभी राजनीतिक दल चुनाव में खड़ा करते हैं । इन अपराधियों का समाज में ऐसा दबदबा रहता है कि लोग भयवश इन्हें वोट देकर विजयी भी बना देते हैं। अतीक और उसके भाई के हत्यारे लवलेश तिवारी, सनी सिंह और अरुण कुमार मौर्य जैसे युवको की मानसिकता चिंता में डाल देने वाली है। ये भी बड़ा माफिया बनना चाहते हैं ।
अब समाज में सब को इस दिशा में सोचना विचारना चाहिए कि कोई भी किशोर अगर अपने प्रारंभिक काल में ही आपराधिक गतिविधियों में संलग्न नजर आए तो उसको सस्नेह समझाया जाना चाहिए और बेहतर इंसान बनने की सीख देनी चाहिए। वह पढ़ाई से दूर न भागे, इसकी चिंता करनी चाहिए। हर बच्चे को बचपन से ही नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए, ताकि वह अपराध की ओर प्रवृत्त ही न हो ।घर की उदासीनता के कारण भी बच्चे बड़े होकर अपराधी बन जाते हैं और धीरे-धीरे यह अपराध उनके शौक में बदल जाता है। धंधे में बदल जाता है। यही कारण है कि माफिया डॉनों के परिवार को हम देखते हैं तो पूरा परिवार अपराध जगत मैं सक्रिय नजर आता है। चाहे उसका भाई हो, बेटे हों या उनकी पत्नी। ऐसे अपराधियों से सख्ती के साथ निपटना चाहिए।