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मणिपुर : राख के नीचे सुलग रही पुरानी आग

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मणिपुर एक फिर से हिंसा की आग में जल रहा है। घाटी से पहाड़ तक हिंसा फैल चुकी है। मैतेई और पहाड़ी जिले के आदिवासी एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गए हैं। पहाड़ी जिले में जहां मैतेई समुदाय के लोगों पर हमले हो रहे हैं, वहीं इंफाल समेत मणिपुर के मैदानी इलाकों में पहाड़ी जिलों से आकर बसे आदिवासियों पर मैतेई हमले कर रहे हैं। स्थिति विषम बनी हुई है। सेना और अर्द्धसैनिक बलों की मौजूदगी के बावजूद स्थिति तनावपूर्ण है। देखते ही गोली मारने के आदेश के बावजूद इंटरनेट सेवा को बंद रखा गया है। दरअसल, यह पुरानी आग है, जो बुझी नहीं थी, राख के नीचे गर्म थी। पहाड़ी जिले में बसे मैतेई एसटी (अनुसूचित जनजाति) का दर्जा मांग रहे हैं, जबकि पहाड़ी जिले के आदिवासी इसके लिए कतई तैयार नहीं हैं। उन्हें लगता है कि मैतेई को एसटी का दर्जा मिलते ही एसटी को मिलने वाली सारी सुविधाओं पर मैतेई का कब्जा हो जाएगा, क्योंकि उनकी आबादी ज्यादा है और बौद्धिक रूप से वे ज्यादा समर्थ हैं। पहाड़ी जिले में बसे मैतेई को एसटी का दर्जा देने के मणिपुर उच्च न्यायालय के गत 19 अप्रैल के निर्देश के बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स मणिपुर ने गत मंगलवार को पहाड़ी जिले चुराचांदपुर में सॉलिडेरिटी मार्च निकाला। तब तक स्थिति सामान्य थी, लेकिन कुछ असामाजिक तत्वों ने हिंसा फैलाने की कोशिश की। उसके बाद स्थिति विस्फोटक हो गई। मणिपुर सरकार स्थिति का पूर्व आकलन करने में चूक गई। हालांकि केंद्र सरकार स्थिति को संभालने के लिए पर्याप्त सुरक्षा बल भेज चुकी है। इसमें दो राय नहीं है कि मैतेई घाटी में रहते हैं और वे बहुसंख्यक हैं। लेकिन जिनकी आबादी कम है, उनके भी अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। उन्हें छठी अनुसूची का दर्जा चाहिए ताकि बाहर से आए लोगों को वहां पर स्थानीय लोगों की तरह अधिकार न मिले। यह कहना उचित नहीं है कि मैतेई हिंदू हैं तो पहाड़ी जिले के आदिवासियों का अधिकार छीन लिया जाए। पहाड़ी जिलों में 40 फीसदी आबादी ईसाई है। यह भी ध्यान में रखना होगा कि मणिपुर के पहाड़ी जिलों को ग्रेटर नगालैंड में शामिल करने की मांग होती रही है। मैतेई समुदाय के वर्चस्व से बचने के लिए मणिपुर के पहाड़ी जिले के अधिकांश लोग ग्रेटर नगालैंड में शामिल होने को तैयार हैं। उन्हें मणिपुर में रखने के लिए मणिपुर सरकार को उनकी चिंताओं के प्रति सहानुभूति रखनी होगी। इसलिए बेहतर यही होगा कि राज्य सरकार मणिपुर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ तत्काल उच्चतम न्यायालय में अपील करे और पहाड़ी जिलों के लोगों के लिए छठी अनुसूची का प्रावधान रखे। तभी पहाड़ी जिलों के लोगों को मणिपुर में रखा जा सकेगा और उनका विश्वास पाया जा सकेगा।