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मध्यवर्ग से राजनीतिक पार्टियों की बेरूखी

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देश की राजनीति में मध्यवर्ग का बड़ा योगदान माना जाता रहा है। मुल्क की सियासत का नैरेटिव तय करने और उसे दिशा देने में इस तबके को सबसे बड़ा फैक्टर माना जाता है। पहले कई मौकों पर मध्यवर्ग ने इसे साबित भी किया है। लेकिन पिछले कुछ अरसे से यह अपनी सियासी पूंजी गंवाता हुआ दिख रहा है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, हाल के दिनों में मध्यवर्ग किसी की भी प्राथमिकता में नहीं दिख रही है। आखिर इस ट्रेंड के पीछे क्या वजह है? जानकार जल्दबाजी में इसे लेकर कोई राय नहीं बनाना चाहते, लेकिन इतना वे भी मानते हैं कि इधर राजनीतिक दलों की ओर से पेश किए जाने वाले सियासी मेन्यू में मध्यवर्ग के स्वाद का खयाल नहीं रखा जा रहा है। उदारीकरण के बाद नब्बे के दशक से मध्यवर्ग का राजनीति में दखल बढ़ा है। खासकर नैरेटिव बनाने में इस तबके की सबसे अहम भूमिका मानी जाने लगी थी। लेकिन यह बात भी सामने आई कि पिछले कुछ वर्षों में इस तबके को सरकार से अपेक्षा के मुताबिक सौगात नहीं मिली। वैसे इस बारे में सरकार का दावा है कि मध्यवर्गीय लोग उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता रहे हैं। लेकिन मध्यवर्गीय लोग शायद ही इससे इत्तेफाक रखें। सच यह भी है कि मध्यवर्ग की अनदेखी की वजह हालिया सियासी नतीजे भी हो सकते हैं। बजट से लेकर चुनावी वादों तक, हाल के दिनों में आए तमाम राजनीतिक परिणामों में यह बात समान रूप से दिखी कि राजनीतिक दल गरीब और किसानों पर अधिक फोकस करते रहे हैं। गांव की आबादी उनकी प्राथमिकता में रही है। इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि चुनावों में गांव में रहने वाले लोग, गरीब और किसान राजनीतिक दिशा तय करने में कहीं अधिक भूमिका निभाते रहे हैं। 2014 के बाद मोदी सरकार ने इनके लिए कई योजनाएं लॉन्च कीं और इस तबके के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ी भी है। सरकार ने इन पर लगातार फोकस किया। केंद्र के अधिकतर संसाधन किसान सम्मान निधि और मुफ्त राशन जैसी योजनाओं के संचालन में गए। इसका सियासी लाभ भी उन्हें मिला। लेकिन इस हिसाब से मध्यवर्ग को सौगातें नहीं मिलीं। यह भी सही है कि सीमित आर्थिक संसाधनों में सरकार हर तबके को खुश नहीं रख सकती। वह भी तब, जब पिछले कुछ वर्षों से देश की आर्थिक दशा वैसी मजबूत नहीं रही। वैसे इसका एक और पहलू है। सत्ता पक्ष का यह तर्क है कि केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में कई ऐसे कदम उठाए, जिनका अप्रत्यक्ष लाभ मध्यवर्ग को मिला है। सरकार से जुड़े एक सीनियर नेता ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर पर बहुत काम किया गया। सड़क और रेल सेवा बेहतर की गई। इन तमाम चीजों से सबसे अधिक लाभ मध्यवर्गीय आबादी को ही होता है। उनका तर्क था कि मिडल क्लास को सीधा लाभ देने से बेहतर है उसे बेहतर संसाधन उपलब्ध कराना। सरकार ऐसा कर रही है और उसका लाभ भी इस वर्ग को मिल रहा है। उधर, विपक्ष ने भी गरीब और गांव में रहने वालों पर ही फोकस किया और उन्हें चुनावों में मुफ्त की चीजें देने का एलान किया। इसका लाभ भी उसे मिला। ऐसे में संदेश यह भी गया कि दोनों पक्ष इस सोच के साथ आगे बढ़े कि मध्यवर्ग और शहरी आबादी को कुछ समय के लिए नाराज करने का राजनीतिक जोखिम लिया जा सकता है।