कल एक तरफ जब नए संसद भवन का उद्घाटन हो रहा था और प्रधानमंत्री भारत को मदर ऑफ डिमॉक्रेसी यानीलोकतंत्र की मां बता रहे थे, उसी समय प्रदर्शन कारियों के लिए निर्धारित स्थल जंतर मंतर में प्रदर्शन कर रहे पहलवानों का पुलिस दमन कर रही थी। पहलवानो के तंबू आदि हटा दिए गए। पहलवान जब संसद भवन की ओर मार्च निकाल रहे थे, तब पुलिस ने उनको बल पूर्वक रोका और गिरफ्तार किया। बाद में कुछ पहलवानों पर एफआईआर भी दर्ज कर लिया गया। पहलवान हाथों में तिरंगा ध्वज लेकर प्रदर्शन कर रहे थे । ध्वज नीचे गिर रहा था, यह कितने शर्म की बात है। यह वही तिरंगा ध्वज है, जो कभी अंतरराष्ट्रीय में खेलों में इन्हीं खिलाडिय़ों ने शान से थामा था। आज वही ध्वज नीचे गिर जाए, और उसकी पुलिस परवाह न करे, यह असहनीय है। जब कभी ऐसी नौबत आए तो पुलिस का दायित्व है कि वह सबसे पहले राष्ट्रध्वज के सम्मान की चिंता करे। वह किसी भी स्थिति में भूमि पर न गिरे। दुख की बात यह है कि प्रदर्शन में (गली मोहल्ले वाले पहलवान नहीं) ऐसे पहलवान शामिल हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत कर देश का गौरव बढ़ाया। इसमें महिला पहलवान भी हैं, जो न्याय के लिए संघर्ष करते हुए पुलिस के हाथों पीटी जा रही हैं। आश्चर्य है कि कुश्ती संघ के अध्यक्ष पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई,जब कि वह आए दिन महिलाओं के खिलाफ असम्मानजनक शब्दों का प्रयोग करता रहता है। कोई व्यक्ति कितना पॉवरफुल हो सकता है, उसे देखना हो तो हम बृजभूषण सिंह के रूप में देख सकते हैं। इसको कुश्ती संघ से न हटाकर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी छवि काफी धूमिल की है। पहलवान कल शांतिपूर्ण तरीके से अपना मार्च निकाल रहे थे। और जैसा कि अकसर देश भर में होता है, पुलिस प्रदर्शनकारियों को अनावश्यक रूप से रोक कर परेशान करती है तो वे उत्तेजित होकर आगे बढऩा चाहते है। बस पुलिस मौका मिलता है और वह उन पर टूट पड़ती है। अगर खिलाडी संसद भवन के पास तक जाकर प्रदर्शन करना चाहते थे, तो उनको प्रदर्शन करने देना चाहिए। ये किसी दूसरे देश के लोग नहीं हैं। अपने ही देश के सम्मानित खिलाड़ी हैं।वे अपनी पीड़ा को बताने के लिए अपने ही संसद भवन के पास जा कर प्रदर्शन करना चाहते थे, तो इस में कोई बुराई नहीं। सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखते हुए खिलाडिय़ों को प्रदर्शन करने का अधिकार मिलना ही चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्य की बात है एक तरफ हम लोकतंत्र की बात करते हैं, तो दूसरी तरफ लोक का ही दमन करते हैं। जंतर मंतर सरकार द्वारा निर्धारित धरना स्थल है। वहां से खिलाडिय़ों का तंबू हटा देना, तो दमन की पराकाष्ठा है। आखिर खिलाडी कहां जाकर प्रदर्शन करे? क्या सोशल मीडिया में अपनी भड़ास निकलता रहे? बयानबाज़ी करता रहे? जब इतने उग्र प्रदर्शन के बावजूद कुश्ती संघ के अध्यक्ष का बाल बांका नहीं हो रहा, तो क्या सिर्फ बयानबाजी से समस्या का हल होगा? उधर पुलिस की एक मुखिया शर्मनाक बयान दे रही थी कि हम ऐसे मामले से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। हमारे पास अतिरिक्त सुरक्षा बल है। कुल मिला कर जो कुछ भी हुआ, वह अलोकतांत्रिक हुआ। मामले का पटाक्षेप होना चाहिए । और जल्द से जल्द कुश्ती संघ के तथाकथित बाहुबली अध्यक्ष को हटाने की कार्रवाई की जानी चाहिए।