Home मेरी बात ऐसे हैं पशुपालन मंत्री!

ऐसे हैं पशुपालन मंत्री!

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यह अजब कि़स्म की उलटबासी का भयावह समय है। पशुपालन मंत्री ही फुल बेशर्मी के साथ बयान दे रहा है कि गाय भी काटी जानी चाहिए!हद है। कर्नाटक सरकार के पशुपालन मंत्री टी व्यंकटेश ने पिछले दिनों कहा कि जब बैल, भैंस काटे जा सकते हैं तो गाय क्यों नहीं काटी जा सकती? इसलिए अब ये महोदय पिछली भाजपा सरकार के समय बनाए गए पशुवध रोकथाम और पशु संरक्षण कानून को बदलने वाली है। ये फरमाते हैं कि गौशाला के लिए राज्य के पास धन की कमी है। कोई बड़ी बात नहीं है कि अब कांग्रेस की सरकार आई है, तो गौ वध की छूट मिल भी जाए। पिछली सरकार ने गो हत्या को सख्ती के साथ रोका था, अधिनियम बना कर। आश्चर्य होता है कि कभी गौवंश की पूँछ पकड़कर राजनीति की नैया पार करने वाली कांग्रेस गाय को लेकर गंभीर क्योंनहीं रही। एक दौर था, जब कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी और फिर गाय कर साथ दूध पीता बछड़ा हुआ करता था। उसी कांग्रेस ने 7 नवम्बर,1966 को दिल्ली में गौ प्रेमियों पर निर्ममतापूर्वक गोलियां दागी थीं, जिसमें अनेक गोभक्तों और संतो की मौत हो गई थी। देशभर के हजारों गौ भक्त दिल्ली में एकत्र हुए थे और गौ हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग को लेकर जुलूस निकाल रहे थे। उन निहत्थे गौ भक्तों को शहीद कर दिया गया था। यह तो चरित्र रहा है। अब अगर कर्नाटक का पशुपालन मंत्री गो हत्या की छूट देने की बात कर रहा है,तो कोई बड़ी बात नहीं कि बहुत जल्दी ऐसा अधिनियम बन भी जाए। यह कितनी गजब बात है कि पशुपालन मंत्री पशुओं के संरक्षण की बात नहीं कर रहा और उनकी हत्या को जायज ठहरा रहा है। कायदे की बात तो यह है कि न तो बैल कटने चहिए, न भैंसें कटनी चाहिए। किसी भी जीव की हत्या नहीं होनी चाहिए। आज देश के अनेक राज्यों में कसाईखाने आबाद हैं, जहां गाय बैल, भैंस सब कट रहे हैं । गायों को बीमार बताकर उनकी हत्या की जा रही हैं। मैं यह सुनकर, पढ़कर चकित और व्यथित हो जाता हूँ कि भारत देश गौ मांस के निर्यात के मामले में काफी आगे है। यह दुख की बात है। शर्म की भी। वह भी भाजपा के शासन काल में!! यह दो साल पहले का आंकड़ा है कि अपना देश साढ़े बयालीस लाख मीट्रिक टन (बीफ) मांस निर्यात करके विश्व का पांचवे नम्बर का देश बन चुका था। अब तो आंकड़ा और बढ़ गया होगा। गाय गंगा की पूजा करने वाली सरकार को बीफ निर्यात पर रोक लगानी चाहिए। भले ही उसे खरबों का नुकसान हो जाए। उस नुकसान की भरपाई टैक्स लगा कर की जा सकती है। लेकिन शायद ही ऐसा हो। सत्ता का चरित्र अजब किस्म का होता है। शराब की बुराई करने वाली सरकार की नाक के नीचे जम कर बिकती है शराब। ऐसे पाखंडी समय में हम केवल भड़ास निकाल सकते हैं। हाय हाय कर सकते हैं पर गाय को, गौ वंश को बचा नहीं सकते। किसी भी समाज के चरित्र को समझने के लिए यह देखना पर्याप्त होता है कि वह अपने पशुओं के साथ कैसा बर्ताव करता है। कुछ कहने की आवश्यकता नहीं कि आज पशुओं के साथ किस तरह की क्रूरताएँ हो रही हैं। अब तो हमारी मानसिकता इस स्तर पर पतित हो चुकी है कि अगर कोई मनुष्य गम्भीर रूप से बीमार है तो क्यों न उसे इंजेक्शन देकर मार दिया जाए। मनुष्य की सम्वेदना धीरे धीरे मरती चली जा रही है। आए दिन हम खबरें पढ़ते रहते है। यह कि नवजात का शव मिला।…एक मां ने अपनी बच्ची को नाले में फेंक कर मार डाला।… बेटे ने बाप की हत्या कर दी। .. पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी।..या पति ने पत्नी के टुकड़े टुकड़े कर दिए।..आदि-आदि। पता नहीं अभी और कितना विनाश देखेंगे हम लोग!