हर साल पर्यावरण के अवसर पर दुनियाभर में उत्सव तो खूब मनाते हैं लेिकन पर्यावरण की स्थिति हर साल बिगड़ती जा रही है। पृथ्वी का दो तिहाई हिस्सा समुद्र भी हमारा साथ छोडऩे को तैयार है, क्योंकि हमने समुद्रों को प्लास्टिक से पाट दिया है। यदि सैकड़ों खरब प्लास्टिक के टुकड़े समुद्र की सतह पर तैर रहे हों, तो जाहिर-सी बात है कि समुद्र पानी का नहीं, बल्कि प्लास्टिक का ही कहलाएगा। दुनिया में आज करीब 40 प्रतिशत समुद्र किसी न किसी तरह से प्लास्टिक की चपेट में आ चुका है और माना जा रहा है कि अगर यही गति रही, तो 2050 तक मछलियों से ज्यादा समुद्र में प्लास्टिक रहेगा। प्लास्टिक प्रदूषण ने समुद्र में जो कुछ भी किया है, उसका दंड तो हमें कल भोगना ही पड़ेगा। हमारी इस तरह की गतिविधियों से समुद्र भी 0.6 डिग्री ज्यादा गर्म हो चुका है, जिससे 20 प्रतिशत समुद्री जीवन संकट में है। समुद्र के 30 प्रतिशत हिस्से में अम्ल (एसिड) की मात्रा ज्यादा हो चुकी है। यदि यही हाल रहा, तो समुद्र का तापमान एक डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा हो जाएगा। ऐसे में हम एक बड़े प्राकृतिक कहर की चपेट में आ जाएंगे। दुनिया में वेट बल्ब टेंपरेचर से उमस बढ़ती है। 32 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान को सामान्य वेट बल्ब टेंपरेचर माना जाता है। लेकिन समुद्री प्रदूषण बढऩे से उसमें भारी बढ़ोतरी हो सकती है। करीब 35 डिग्री सेंटीग्रेड वेट बल्ब टेंपरेचर सबके लिए कष्टकारी होगा, जिससे जीवन समाप्त हो जाएगा। यह माना जा रहा है कि 269 हजार टन प्लास्टिक समुद्र में तैर रहा है और करीब चार अरब माइक्रो फाइबर प्रति वर्ग किलोमीटर समुद्र में अपनी जगह बना चुका है। दुनिया का करीब 70 फीसदी प्लास्टिक कचरा समुद्र में ही जाता है। अगर हालात ऐसे ही रहे, तो दुनिया के लिए सबसे बड़ा संकट पैदा हो जाएगा। वैसे भी पर्यावरणीय शोध हमारे पक्ष में नहीं है। इसका पहला और सबसे बड़ा खतरा तो आज उस जीवन पर है, जो समुद्र में पनपता है। हजारों तरह के समुद्री पक्षी आज खतरे में आ चुके हैं और प्लास्टिक के कारण समुद्री कछुए, सील्स और स्तनपायी जीव विलुप्ति के कगार पर चले गए हैं। असल में ये सब लगातार समुद्र में फैले प्लास्टिक कचरा खाकर मृत्यु से जूझ रहे हैं। इनमें ऐसी भी कई प्रजातियां हैं, जो पहले ही खतरे के निशान को पार कर चुकी थीं, जिसमें हवाईयन मौंक, पेसिफिक लॉगरहेड जैसे कछुए आते हैं। करीब 700 ऐसी प्रजातियां हैं, जिनका अस्तित्व प्लास्टिक कचरा खाने के कारण खतरे में पड़ चुका है। इन प्रजातियों का भी समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के नियंत्रण में महत्वपूर्ण योगदान है। चाहे सिंगल यूज प्लास्टिक हो या किसी अन्य प्रकार का, समुद्र के पानी में मिलकर वह माइक्रो प्लास्टिक फाइबर में बदल जाता है और समुद्री जीव उसे अपना भोजन समझकर खा लेते हैं। प्लास्टिक का सीधा असर समुद्र और समुद्री जीवों पर पड़ा है। इसके बावजूद जीवाश्म ईंधन उद्योग, जो प्लास्टिक उत्पाद में बड़ी भूमिका निभाता है, अगले दशक में 40 प्रतिशत ज्यादा उत्पादन करने का मन बनाए हुए है। ऐसा होने पर न केवल समुद्री प्रदूषण बढ़ेगा, बल्कि प्लास्टिक के कारण जहरीला वायु प्रदूषण भी बढ़ेगा और समुद्र से जुड़े लोगों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो जाएगा। प्लास्टिक प्रदूषण की इस महामारी को रोकना आज सबसे बड़ी जरूरत है। पृथ्वी से लेकर समुद्र तक आज प्लास्टिक प्रदूषण कहर बरपा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा ग्रेट पेसिफिक गार्बेज पैच, जो प्रशांत महासागर में बन चुका है, वह सबसे बड़ी चर्चा का विषय है। यहां जिस तरह से प्लास्टिक ने बहुत ज्यादा जगह घेर रखी है, उसने बहुत से जीवन को लीलना शुरू कर दिया है। प्रशांत महासागर में करीब 12,000 से 24,000 टन प्लास्टिक हर वर्ष जाता है। यह न केवल समुद्री जीवों की खाद्य शृंखला का हिस्सा बन गया है, बल्कि उन पर निर्भर मनुष्यों के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है। वे भी प्लास्टिक प्रदूषण का शिकार बन रहे हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि कैलिफोर्निया के बाजार में बिकने वाली मछलियों की आंतों में बहुत ज्यादा प्लास्टिक के माइक्रोफाइबर्स पाए गए। इसी तरह समुद्री कछुआ, जो प्लास्टिक के कचरे में तैरता रहता है, उसे ही भोजन समझ कर अपनी आंतों को बर्बाद कर रहा है। लगातार प्लास्टिक के उपयोग से वह एक बड़े संकट में फंस चुका है। हजारों समुद्री पक्षी, जो कि प्लास्टिक को ही भोजन समझकर खाते हैं, वे भी आज एक बड़े खतरे में फंसे हैं। माना जाता है कि करीब 60 प्रतिशत पक्षियों ने बहुत ज्यादा मात्रा में प्लास्टिक का सेवन कर लिया है। यही हाल रहा, तो 2050 तक करीब 99 प्रतिशत समुद्री पक्षी, जो शायद इसे खा चुके होंगे, अपनी प्रजाति की समाप्ति की ओर होंगे। यह भी देखा गया है कि पिछले 40 वर्षों में प्लास्टिक कचरों की बढ़ती मात्रा ने समुद्र की क्षमता का नाश कर दिया है। समुद्र इस दुनिया का दो तिहाई हिस्सा है और उसमें पलने वाले तमाम जीव अगर प्लास्टिक खाते हैं तथा किसी न किसी रूप में वह मनुष्यों तक पहुंचता है, तो पूरी कायनात का जीवन संकट में पडऩा अवश्यंभावी है। सवाल यह है कि हम कैसे इससे मुक्त हों? हमने जिस तरह से अपनी जीवन शैली में प्लास्टिक को अपना लिया है, उससे मुक्त होने के रास्ते नहीं दिखते हैं। इसलिए प्लास्टिक का उपयोग छोडऩा ही एकमात्र उपाय है, जिससे प्लास्टिक जनित संकटों से मुक्ति पाई जा सकती है, अन्यथा न हम पृथ्वी को बचा पाएंगे, न आसमान को और न ही समुद्र को। प्लास्टिक भले ही बीसवीं सदी का अविष्कार है, लेकिन दुर्भाग्य से यह इतना अविनाशी है कि कई सदियों तक रहेगा।