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परिसीमन की आहट दक्षिण में घबराहट

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भाषा और संस्कृति के रूप में दक्षिण भारत का उत्तर भारत से विरोध बहुत पुराना है किन्तु अब इसमें राजनीति का तड़का भी लगने वाला है। दरअसल, नए संसद भवन के उद्घाटन के बाद यह संभावना जताई जा रही है कि 2026 में प्रस्तावित परिसीमन के चलते संसद में दक्षिण भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व उत्तर भारत के हिंदीभाषी राज्यों की अपेक्षा कम हो जाएगा। संभावना जताई जा रही है कि 2026 में परिसीमन किया जा सकता है। वैसे भी जनसंख्या के आधार पर लोकसभा की सीटों की संख्या वर्तमान में अप्रासंगिक है और इसमें बढ़ोतरी समय की मांग है किन्तु यही जनसंख्या अनुपात अब दक्षिण भारत के राज्यों के लिए गले की फांस बन गया है। पिछले चार दशक में हिंदीभाषी राज्यों में जनसंख्या बढ़ी है जबकि दक्षिण भारत के राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण पर बेहतर कार्य हुआ है। ऐसे में जनसंख्या अनुपात के आधार पर परिसीमन से दक्षिण भारत के राज्यों में लोकसभा सीटें हिंदीभाषी राज्यों की अपेक्षा कम बढ़ेंगी। इसी कारण दक्षिण भारत के राज्यों में अभी से विरोध के स्वर प्रबल होने लगे हैं। दक्षिण भारत के नेताओं का मानना है कि बेहतर स्वास्थ्य, उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और रोजगार के अवसरों की अधिकता के बावजूद संसद में उनका प्रतिनिधित्व न बढऩा उनके साथ अन्याय है। हालांकि संभावित परिसीमन के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता होगी क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 81 के अनुसार सदन में 550 से अधिक निर्वाचित सदस्य नहीं हो सकते। फिर अभी 2021 की जनगणना भी नहीं हुई है। यदि परिसीमन आवश्यक है तो सरकार को पहले जनगणना करानी पड़ेगी। यदि 2021 की जनगणना नहीं होती है तो वह 2011 की जनगणना को आधार मानकर परिसीमन करा सकती है किन्तु इससे भी दक्षिण भारत के राज्यों के साथ अन्याय होगा। लोकसभा और राज्य विधानसभा सीटों की सीमाओं के पुनर्निर्धारित कार्य को परिसीमन कहा जाता है जिसका उद्देश्य है परिवर्तित जनसंख्या का समान प्रतिनिधित्व तय करना। उक्त प्रक्रिया के चलते लोकसभा में अलग-अलग राज्यों को आवंटित सीटों की संख्या तथा विधानसभाओं की कुल सीटों की संख्या में परिवर्तन आ सकता है। संविधान के अनुसार किसी राज्य को आवंटित लोकसभा सीटों की संख्या और राज्य की जनसंख्या के बीच का अनुपात सभी राज्यों के लिए एक समान होना चाहिए किन्तु इसी प्रावधान के चलते जनसंख्या नियंत्रण में फिसड्डी रहने वाले उत्तर भारत के राज्यों को संसद में अधिकाधिक सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है। जबकि परिवार नियोजन को बढ़ावा देने वाले दक्षिण भारत के राज्यों को अपनी सीटें कम बढऩे का अंदेशा है। इस परिस्थिति को भांपते हुए इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान संविधान में संशोधन कर परिसीमन को वर्ष 2001 तक के लिए स्थगित कर दिया था। यद्यपि लोकसभा और विधानसभाओं में सीटों की संख्या में परिवर्तन पर रोक को वर्ष 2001 की जनगणना के बाद हटा दिया जाना था किन्तु पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा एक अन्य संशोधन द्वारा इसे वर्ष 2026 तक के लिये स्थगित कर दिया गया। इस रोक को इस आधार पर उचित ठहराया गया कि 2026 तक देश में समान जनसंख्या अनुपात हो जाएगा जिससे दक्षिण भारत के राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व उत्तर भारत के राज्यों के बराबर होगा।