नदी को एक कूड़ादान तो हमने बनाया है .
प्रदूषित जल, प्रदूषित मन भी हमने ही मिलाया है
‘नदी’ को ‘दीन’ करने का किया है पाप मानव ने.
हमीं ने इस सुधा में आके कितना विष मिलाया है
क भी कभी नदियों की दुर्दशा पर कुछ मुक्तक लिखे थे। यह मुक्तक आज फिर मनेंद्रगढ़ प्रवास के दौरान याद आया, क्योंकि यहाँ जीवनदायिनी हँसिया नदी संकट से जूझ रही है। इसे बचाने और पहले जैसी भरीपूरी बनाने की दिशा में अब संस्था ग्रीन वैली नामक संस्था और पतंजलि योग समिति के सदस्य शहर के लोगों का सहयोग लेकर निरन्तर श्रमदान कर रहे है। हसदो और विशालबोरा नदी भी सूख रही है, जिस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। गनीमत है कि केवई नदी अभी सुरक्षित है। रायपुर की खारुन नदी और बिलासपुर की अरपा को लेकर लोग सेवाकार्य करते रहे हैं। तालाबों की साफ-सफाई भी जन सहयोग से हो रही है। मनेंद्रगढ़ जैसे अनेक शहरों में कुछ बड़े तालाब रहे हैं। जो पाट दिए गए, वहाँ दुकानें तन गईं। कुछ लापरवाही के कारण सूख गए या जलकुंभी से पट चुके हैं। बस कुछ ही शेष हैं। यह एक शहर की बात नहीं। अनेक शहरों में तालाबों को पाट कर व्यावसायिक या मनोरंजन परिसर बनाने की नादानी हो रही है। हम देश का इतिहास देखें तो जल संरक्षण की दिशा में हमारा देश सदियों पहले बहुत गम्भीर रहा है. राजस्थान हो या छत्तीसगढ़ अथवा अन्य कोई राज्य, लगभग हर जगह बड़े-बड़े तालाब बनाए जाते थे, बड़े-बड़े कुएँ-तालाब आज भी हमे दंग कर देते हैं, खास कर राजस्थान में जल संरक्षण की परम्परा रही क्योंकि यहाँ लोगों को जल -संकट का आभास था, इसलिए उसका विकल्प भी उन्होंने विकसित कर लिया था. पर अब इस दिशा में न तो गाँव के लोग गम्भीर हो कर सोच रहे हैं, और सरकारें भी। औद्योगीकरण के कारण गाँव पहले जैसे नहीं रहे.वहां उद्योगजनितप्रदूषण का विस्तार हुआ है। उस पानी की निकासी के लिए अलग नाली बननी चाहिए। हँसिया नदी को भी प्रदूषण से बचाने के लिए यही सुझाव सामने आया। कभी हँसिया नदी दो सौ फुट तक चौड़ी थी, अब सिमट कर सत्तर फुट हो गई। लोगों ने नदी के किनारे घर बना लिए। इसके कारण नदी सिमटती गई, सूखती गई। लेकिन अब लोग जागरुक हुए है, जब बहुत देर हो चुकी है। फिर भी कोशिश हो रही है कि नदी प्रदूषण मुक्त हो सके। जब देश मुगलों के अधीन था, तब गाँव का तंत्र गाँव के अधीन ही रहता था, गुलाम था,हमने नदियों की पूजा की, उनको पवित्र कहा। सैकड़ो श्लोक रचे गए नदियों की वंदना में. आज भी अनेक नदियां पवित्रता की प्रतीक हैं. गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा आदि अनेक नदियों को हम पूजते रहे हैं पर आज ये ही नदिया किस हाल में हैं, किसी से छिपा नहीं है. हालत यह है कि कभी भीषण जल संकट के समय कुछ शहरों में ट्रेनों के जरिये पानी पहुंचाया गया. यह कितनी भयावह स्थिति है कि हम अपनी जीवनदायिनी नदियों को सूखने पर विवश कर देते हैं। मनुष्य की उदासीनता, उसकी अज्ञानता ही उसके विनाश का कारण बनती जा रही है. जंगलों में आग लगने का सिंलसिला भी सामने है. आग लगाने वाले लोग ही है. उत्तराखंड में कुछ लोग गिरफ्तार किये गए हैं. नदियों को प्रदूषित करने वाले भी दण्डित किये जाने चाहिए। मतलब यह कि अपने कुछ स्वार्थ के लिए हम अपने जंगल और अपनी नदियों की जान भी ले सकते हैं. गंगा जो आज प्रदूषित है, उसके पीछे बड़ा कारण औद्योगिक प्रदूषण तो है ही, वे लोग भी जिम्मेदार है, जो नित गंगा का इस्तेमाल करते हैं. जितना नहाते नहीं, उससे ज्यादा उसे गंदा करके लौटते हैं. इसलिए अब जरूरी है कि नदियों के किनारे जल सैनिक तैयार किये जाएँ।
सीमा पर सैनिक तैनात रहते हैं देश की सुरक्षा के लिए जवान तैनात रहते हैं,. उसी तरह अब नदियों को बचाने के लिए जवानों को तैनात करने की नौबत आ चुकी है. पता नहीं क्यों लोग नदियों का समुचित संरक्षण नहीं कर पाते। प्रदूषण इतना है कि उनका आचमन तक करने में डर लगता है. एक सर्वे के अनुसार महाराष्ट्र की नदिया सर्वाधिक प्रदूषित है, उसके बाद गुजरात और फिर उत्तरप्रदेश की नंबर आता है. आश्चर्य है कि लोग नदियों को पूजते तो हैं पर उसे बचाने के लिए व्याकुल क्यों नहीं होते? पानी अभी सहजता से उपलब्ध हो जाता है इसलिए शायद मन में उसकी भीषण कमी की कल्पना नहीं कर पाते। लेकिन उनको कल्पना करनी होगी और नदी के जल को अँजुरी में भर कर संकल्प लेना होगा कि ये हमारी माँ है, इसे हम बचाएंगे, इसे गन्दा नहीं करेंगे। नदी को प्रदूषण मुक्त करना हमारा प्रथम कर्तव्य है. इन नदियों के प्रति जागरूक करने का काम जल कल्याण परिषद जैसी संस्थाएं कर सकती हैं। जल गीत लिखें जाएँ, नाटक मंचित हो, कहानिया लिखी जाए, जल पर निरन्तर विमर्श हो. नदियों के तात पर नदी महोत्सव हो, पर यह भी ध्यान रहे कि महोत्सव नदियों के प्रदूषण के कारण न बन जाएँ। असम (ब्रह्म पुत्र),और दक्षिण की कुछ नदिया (जैसे कृष्णा-कावेरी ) अभी प्रदूषण से कुछ बची हुई हैं. इनसे पूरे देश को सबक लेना चाहिए। कुल मिला कर जन जागरण अभियान चला कर हम नदियों को बचा सकते है, और नदियों के बहाने देश को बचा सकते हैं। इसके लिए हरियाली की चिंता करें। जंगल बचें। अब समय आ गया है की पूरा देश जल संरक्षण के मामले में बेहद गम्भीर हो जाए। जल नहीं तो कल नहीं, यह एक नारा नहीं, सच्चाई है. बहुत पहले कवि रहीम कह गए बिन पानी सब सून. अगर हम अभी नहीं चेते तो सब कुछ सून होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। मेरा एक और मुक्तक है,
नदी को हम बचाएंगे, नदी हमको बचाएगी .
अगर प्यासे रहेंगे तो हमें पानी पिलाएगी .
नदी है माँ हमारी उसपे कोई आंच न आए,
अगर वो मिट गयी तो फिर हमे भी वो मिटाएगी.