हमारी सड़कों पर पैदल यात्रियों के लिए जगह नहीं है। पैदल यात्री उपेक्षित और जोखिम भरे सड़कों पर चलने को मजबूर हैं। वाहनों की भीड़-भाड़ के बीच उन्हें अपनी सूझ-बूझ से खतरे उठाते हुए सड़क पार करना पड़ता है। ऐसे में बच्चों और वृद्धों की स्थिति बहुत मुश्किल भरी होती है। महानगरों में हम केवल पैदल पार-पथ पट्टी का रंग-रोगन करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। लेकिन उन पर चलने का अधिकार पैदल यात्रियों को मिले, यह सुनिश्चित नहीं करते। दुनिया भर में पैदल यात्रियों को सड़क पर चलने की बेहतर सुविधाओं के साथ-साथ सड़क पार करने की समुचित प्रक्रिया अपनाई जा रही है। हर जगह पैदल पार-पथ बने हैं। पैदल यात्रियों के लिए ट्रैफिक लाइटें लगी हैं, जिनका शत-प्रतिशत पालन किया जाता है। जहां ट्रैफिक लाइटें नहीं लगी हैं, वहां वाहन चालक पहले पैदल यात्रियों को सड़क पार कराते हैं, फिर अपनी गाड़ी आगे बढ़ाते हैं। हमें इस संस्कृति को अमल में लाने की आवश्यकता है। पैदल यात्रियों को सड़कों पर होने वाली मुश्किलों पर पहली बार एक समग्र अध्ययन, मई, 2023 में सातवें संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सड़क सुरक्षा सप्ताह (15-21 मई, 2023) के दौरान देखने को मिला, जिसमें जर्मनी की एक इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी कंपनी ने एक शोध-पत्र प्रस्तुत करते हुए बताया कि हिंदुस्तान की सड़कों पर मारे जाने वाले हर दस लोगों में से एक पैदल यात्री होता है। प्रतिदिन नब्बे पैदल यात्री कभी घर नहीं पहुंच पाते हैं और 165 घायल होकर अस्पताल पहुंच जाते हैं। वर्ष 2021 में दिल्ली में 504, चेन्नई में 297, मुंबई में 174, बंगलूरू में 160, अहमदाबाद में 161, गुरुग्राम में 118, हैदराबाद में 94 और कोलकाता में 78 पैदल यात्रियों की सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु हुई। कार या हल्के वाहनों ने लगभग अस्सी प्रतिशत पैदल यात्रियों की जान लीं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2021 में कुल 18,900 पैदल यात्री सड़कों पर मारे गए। भीड़-भाड़ वाली सड़कों पर पैदल यात्रियों के सड़क पार करने की समुचित व्यवस्था न होने से ही ज्यादातर लोग मारे जाते हैं। इससे निपटने के क्या उपाय हो सकते हैं? सड़कों की डिजाइन और निर्माण, विभिन्न विभागों यथा लोक निर्माण विभाग, नगर पालिका, जल और विद्युत विभाग के बीच तालमेल से किया जाना चाहिए। सड़क डिजाइन और जन सुरक्षा की वैज्ञानिक समझ विकसित करने के लिए इन सभी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। सड़कों को बार-बार खोदना न पड़े, इसके लिए दोनों ओर जालीदार छत से ढंके, गहरे नाले बनाए जाने चाहिए, जिनमें से हर प्रकार की पाइप लाइनें गुजारी जा सकें और उनकी मरम्मत की जा सके। आवागमन में बाधा डालने वाले हर अवरोध से निदान के बारे में कार्यदायी संस्था का उत्तरदायित्व तय होना चाहिए। फुटपाथ और सड़क निर्माण का काम ठेकेदारों या मजदूरों की मनमर्जी से नहीं, बल्कि जन सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। शहरी क्षेत्रों में सड़क के दोनों ओर बिना फुटपाथ के सड़कों का निर्माण नहीं होना चाहिए। पैदल यात्रियों की संख्या का अध्ययन और उनके अनुपात में फुटपाथों की चौड़ाई निर्धारित होनी चाहिए।