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विपक्ष के नेताओं को खुद पर ही विश्वास नजर नहीं आ रहा है?

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अब सबकी निगाहें 8 अगस्त को चर्चा की शुरुआत होने से ज्यादा इस बात पर टिकी होंगी कि सरकार के विरोध में सदन के अंदर तीखे भाषण देने वाले ये विपक्षी दल 10 अगस्त को सदन में अपने ही द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग करवा कर अपनी ताकत दिखाएंगे या नहीं ? केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर सदन में मंगलवार से चर्चा शुरू होनी है। मंगलवार यानी 8 अगस्त से अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत होगी। मंगलवार, बुधवार और गुरुवार यानी 10 अगस्त तक लोकसभा में सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी। 10 अगस्त को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा का लोकसभा में जवाब देंगे। प्रधानमंत्री के जवाब के बाद अगर विपक्षी दल की तरफ से डिवीजन की मांग की जाएगी तो सदन में वोटिंग भी उसी दिन होगी। लोकसभा के सदस्य संख्या के आधार पर देखा जाए तो सरकार को विपक्ष द्वारा लाए गए इस अविश्वास प्रस्ताव के कारण फिलहाल कोई खतरा बिल्कुल नजर नहीं आ रहा है। लोकसभा में बीजेपी के पास अपने दम पर बहुमत है। भाजपा के पास 301 सांसद हैं जो विपक्षी दलों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को गिराने के लिए काफी हैं। अगर इसमें एनडीए के सहयोगी दलों के सांसदों का आंकड़ा जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा 331 को भी पार कर जाता है। जैसा कि आप जानते हैं कि बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस- इन दोनों राजनीतिक दलों ने भी विपक्षी द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ मोदी सरकार का साथ देने का फैसला किया है। लोकसभा में बीजू जनता दल के फिलहाल 12 सांसद हैं वहीं वाईएसआर कांग्रेस के सांसदों की संख्या 22 है। बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस के सांसदों की संख्या मिलाने के बाद सरकार के समर्थक सांसदों का आंकड़ा बढ़कर 365 तक पहुंच जाता है और यह विपक्षी दलों की गोलबंदी की तुलना में कहीं ज्यादा है। ऐसे में पहला सवाल तो यही खड़ा हो रहा है की आंकड़ा पक्ष में नहीं होने के बावजूद विपक्षी दल मोदी सरकार के खिलाफ यह अविश्वास प्रस्ताव क्यों लेकर आए हैं ? विपक्षी दल एकजुट होकर आईएनडीआईए नाम से गठबंधन तो बना चुके हैं लेकिन नंबर के आधार पर जब इस गठबंधन की ताकत को दिखाने का असली समय आया तो विपक्षी दलों ने वोटिंग करवाने की बजाय वॉकआउट करना ज्यादा बेहतर समझा। दिल्ली सरकार के अधिकार को लेकर लोक सभा में बिल पास होने के दौरान विपक्षी दल चाहते तो डिवीजऩ की मांग कर सदन में वोटिंग करवा कर अपनी ताकत दिखा सकते थे लेकिन उन्होंने उस समय ऐसा नहीं किया।