जी हाँ, भारत के पास यही मौक़ा है कि वह पाकाधिकृत कश्मीर (पीओके)को भारत में शामिल करने के लिए वहां के आंदोलनकारियों का साथ दे। उनके पक्ष में संसद में चर्चा करे। पीओके के लोग भारत से उम्मीद कर रहे हैं कि वह उनको पाकिस्तान के बंधन से मुक्त कराने में मदद करेगा। वहां के लोग पाकिस्तान सरकार से परेशान हैं। महंगी बिजली, राशन के साथ साथ समय-समय पर उन पर अत्याचार भी होते हैं। यही स्थिति बलूचियों के साथ भी है। वे भी पाकिस्तान से मुक्ति चाहते है। बलूचियों के दमन की अनेक कहानियां समय -समय पर प्रकाश में आती रही हैं। अनेक बलूच नेता तो पलायन कर चुके हैं या जेलों में हैं। बलूच और पीओके के लोग समय समय पर अपनी मुक्ति के लिए आंदोलन करते रहे हैं। पाक ने हमारे जिस कश्मीर को अपने कब्जे में ले रखा है, वह भारत का ही है। इसे लेकर भारत को आक्रामक होना चाहिए। यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि वहां के लोग भारत पर भरोसा कर रहे हैं कि वही हमें आज़ाद करा सकता है। उस मामले में क्या कूटनीति हो सकती है, इस पर विचार करके भारत को पीओके के लोगों का साथ देना ही चाहिए। भारत की पकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए कि वह अपना ज़बरदस्ती वाला अधिकार उफऱ् कब्जा छोड़ दे।संयुक्त राष्ट्र में भी भारत लगातार इस मुद्दे को उठाए। अभी एक बेहतर मौका है कि पीओके के लोग अपनी मुक्ति के लिए आंदोलन कर रहे हैं। ऐसे समय में केंद्र सरकार को संसद में चर्चा करनी चाहिए और इस मसले पर विपक्ष की भी सत्ता पक्ष का साथ देना चाहिए। पर हमारे देश का दुर्भाग्य यह है कि आपसी राजनीतिक संघर्ष मतभेद से आगे बढ़ कर मनभेद तक जा पहुंचा है। वर्षो पहले संसद के 1994 में, दोनों सदनों में यह प्रस्ताव पारित किया गया था कि पकिस्तान कश्मीर के कब्जे वाले स्थान को छोड़ दे। अब जब वहां आंदोलन हो रहा है, तो लोग भारत को उसके ही प्रस्ताव की याद भी दिलाते हुए कह रहे हैं कि हमारे आंदोलन का समर्थन करो. तो पक्ष-विपक्ष दोनों को इस मुद्दे पर चर्चा करके एक बार फिर प्रस्ताव पारित करके पकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र तक गुहार लगानी चाहिए। यह भारत की सम्प्रभुता पर सीधा प्रहार है मगर हम उदारवादी बन कर वर्षो से खामोश बैठे हुए हैं! हमारी ख़ामोशी देशवासियों को निराश करती है। जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने का ऐतिहासिक कार्य केंद्र सरकार ने किया, अब एक बार फिर पीओके की मुक्ति का कड़ा प्रस्ताव संसद में पारित होना ही चाहिए।अब तो भाजपानीति एनडीए के पास स्पष्ट बहुमत भी है. इसके साथ ही कश्मीर से पलायन कर चुके पंडितों को दुबारा वहां बसने और उनकी सुरक्षा के समुचित बंदोबस्त पर भी गंभीरता के साथ विचार करके निर्णय लेने की आवश्यकता है। हमारे रक्षामंत्री कई बार पीओके की आज़ादी के लिए हुंकार तो भरते रहते हैं लेकिन अब ज़ुबानी जमाखर्च करने का समय नहीं है। इस मुद्दे पर हमे आक्रामक रुख अपनाना होगा। तभी पाकिस्तान पर दबाव बनेगा।