वसुंधरा राजे प्रतीक्षा में हैं और सचिन पायलट शांत। दोनों धुरंधर, दोनों का जनाधार और दोनों ही दमदार। राजस्थान में चुनावी बिसात बिछ गई है, लेकिन फिर भी दोनों अपने अपने दलों में दरकिनार। विधानसभा चुनाव सर पर हैं और सबकी नजर इन्हीं दोनों नेताओं पर है। कांग्रेस में पायलट के रणनीतिक मौन के मायने तलाशे जा रहे हैं, और बीजेपी में राजे की राजनीतिक उम्मीदों के अवसान पर मंथन चल रहा है। जैसा कि साफ दिख रहा है, राजस्थान का विधानसभा चुनाव मोदी बनाम गहलोत होता जा रहा है, और बीजेपी में सभी नेताओं को भरोसा है कि उनकी सरकार हर हाल में बन जाएगी। शायद, इसीलिए बीजेपी की सबसे बड़ी नेता वसुंधरा राजे को कहीं कोई बहुत भाव मिलता नहीं लग रहा, तो कांग्रेस में भी पायलट के पलटवार करते करते तलवार को म्यान में धर देने के बाद लगभग दो महीने से मौन धारण करने से राजनीति में कई तरह की नई संभावनाओं की सुगबुगाहट होने लगी है। बीजेपी में वसुंधरा की अतिरिक्त सक्रियता और कांग्रेस में पायलट की परेशान कर देनेवाली निष्क्रियता राजस्थान की राजनीति को हैरान कर रही है। आलम यह है कि दोनों को अपनी अपनी पार्टियों में कोई खास महत्व नहीं मिल रहा। गहलोत को लग रहा है कि वे चुनाव जीत रहे हैं। इसके विपरीत, कांग्रेस में ही उनका विरोधी खेमा, पायलट समर्थक अपने ही मुख्यमंत्री गहलोत के हर दांव को खोखला बताते हुए पायलट की अगुवाई में चुनाव न होने के कारण कांग्रेस की बहुत बुरी हार का दावा कर रहा है। खुद पायलट भी निष्क्रिय बैठे हैं और आखिर कर क्या कर रहे हैं, कोई नहीं जानता। उधर, बीजेपी के लिए यह केवल विधानसभा का चुनाव नहीं, बल्कि अप्रैल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास भी है। फिलहाल राजस्थान की 25 में से 24 लोकसभा सीटें बीजेपी के खाते में हैं, और एक सीट उसके गठबंधन में हनुमान बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से जीती थी। इनके अलावा, राजस्थान में लगभग 7 से 8 प्रतिशत राजपूत वोटों पर कब्जा करने के लिए बीजेपी में विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और सांसद दीया कुमारी के अलावा कुछ और राजपूत नेता हैं। लेकिन राजस्थान की जनता इनमें से किसी को गहलोत या वसुंधरा की बराबरी का नेता मानती नहीं। इधर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व और उसके इशारे पर प्रदेश नेतृत्व वसुंधरा राजे को किनारे करने में लगे हुए हैं। हाल ही में कांग्रेस सरकार के खिलाफ राज्य स्तरीय विरोध प्रदर्शन हुआ, तो उसके प्रचार अभियान में भी वसुंधरा राजे पोस्टर, बैनर और होर्डिंग्स से भी गायब कर दी गईं। माना कि वसुंधरा राजे राजस्थान में बीजेपी की सबसे बड़ी नेता हैं, लेकिन पार्टी आलाकमान को उनकी स्वच्छंदता कतई पसंद नहीं और वसुंधरा को आलाकमान का अंकुश स्वीकार्य नहीं। फिर लगता है कि दोनों ही झुकने को तैयार नहीं।