चुनावी राज्यों में भाजपा-कांग्रेस दोनों ही एक-दूसरे को मात देने की कोशिशें कर रहे हैं, लेकिन इसी बीच छत्तीसगढ़ की खबर दोनों दलों के लिए कुछ चिंता पैदा करने वाली है। आदिवासी समुदाय के नेता अरविंद नेताम ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर छत्तीसगढ़ की सभी आदिवासी सीटों और कुछ अन्य सीटों पर चुनाव लडऩे का फैसला कर लिया है। सर्व आदिवासी समाज मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में भी आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों पर भी चुनाव लडऩे पर विचार कर सकता है। यदि ऐसा हुआ तो इन सभी चुनावी राज्यों के चुनाव में एक नया समीकरण पैदा हो जाएगा जो भाजपा-कांग्रेस दोनों को ही नुकसान पहुंचा सकता है। मध्य प्रदेश में आदिवासी मतदाताओं का रुझान भाजपा-कांग्रेस में बंटा हुआ है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इन पर काफी हद तक कब्जा कर लिया था। छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में भाजपा का जादू चला था तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा का लगभग सफाया कर दिया था। उसने सबसे ज्यादा आदिवासी सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार भी कांग्रेस का आदिवासी सीटों पर दावा मजबूत माना जा रहा था, लेकिन उसके बागी नेता अरविंद नेताम ने पार्टी की चुनौतियां बढ़ा दी हैं। यदि सर्व आदिवासी समाज ने आदिवासी समुदाय के मतदाताओं के एक हिस्से को आकर्षित किया तो भाजपा-कांग्रेस के समीकरण बदल सकते राजस्थान में कांग्रेस आदिवासी बहुल सीटों पर कब्जा करने की पूरी कोशिश कर रही है। राहुल गांधी ने आदिवासी समुदायों के लिए विशेष योजनाओं की शुरूआत कर उन्हें कांग्रेस की ओर आकर्षित करने का काम किया है। उन्होंने आदिवासियों को देश का असली मूल निवासी बताकर उनकी भावनाओं को अपने साथ जोडऩे का काम किया है। वहीं, भाजपा भी गुजरात से सटे आदिवासी इलाकों में बड़े नेताओं की मौजूदगी कराकर उन्हें अपने साथ जोडऩे की कोशिश कर रही है। राज्य के निर्माण के बाद लगातार दूसरी बार सत्ता में आने की दावेदारी कर रही भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने भी आदिवासी मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश की है। आदिवासी दिवस पर बीआरएस नेता के. कविता ने कहा है कि उनकी सरकार आदिवासी हितों के लिए पूरी तरह तैयार है। समान नागरिक संहिता से आदिवासी समुदाय के पारंपरिक रीति-रिवाजों पर असर पड़ सकता है। उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार राज्य के आदिवासी समुदाय के लोगों के हितों की पूरी तरह रक्षा करेगी। समान नागरिक संहिता से आदिवासी समाज को प्रभावित न होने देने का दावा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय के लिए 29 सीटें और राजस्थान में 25 सीटें आरक्षित हैं। तेलंगाना की 119 सीटों में से 12 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं।