केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाया है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि सरकार इस विशेष सत्र में एक देश एक चुनाव पर विधेयक ला सकती है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक देश एक चुनाव के अपने विचार को आगे बढ़ाया था। तब से अब तक कई मौकों पर भाजपा की ओर एक देश एक चुनाव की बात की जाती रही है। ये विचार इस पर आधारित है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों। अभी लोकसभा यानी आम चुनाव और विधानसभा चुनाव पांच साल के अंतराल में होते हैं। इसकी व्यवस्था भारतीय संविधान में की गई है। अलग-अलग राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल अलग-अलग समय पर पूरा होता है, उसी के हिसाब से उस राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं। हालांकि, कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते हैं। इनमें अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम जैसे राज्य शामिल हैं। वहीं, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम जैसे राज्यों के चुनाव आगामी लोकसभा चुनाव से ऐन पहले होंगे। दरअसल, एक देश एक चुनाव की बहस 2018 में विधि आयोग के एक मसौदा रिपोर्ट के बाद शुरू हुई थी। उस रिपोर्ट में आर्थिक वजहों को गिनाया गया था। आयोग का कहना था कि 2014 में लोकसभा चुनावों का खर्च और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों का खर्च लगभग समान रहा है। वहीं, साथ-साथ चुनाव होने पर यह खर्च 50:50 के अनुपात में बंट जाएगा। सरकार को सौंपी अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में विधि आयोग का कहना था कि साल 1967 के बाद एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया बाधित हो गई। आयोग का कहना था कि आजादी के शुरुआती सालों में देश में एक पार्टी का राज था और क्षेत्रीय दल कमजोर थे। धीरे-धीरे अन्य दल मजबूत हुए कई राज्यों की सत्ता में आए। वहीं, संविधान की धारा 356 के प्रयोग ने भी एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया को बाधित किया। अब देश की राजनीति में बदलाव आ चुका है। कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की संख्या काफी बढ़ी है। वहीं, कई राज्यों में इनकी सरकार भी है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि 2019 में एक साथ चुनाव कराते हैं, तो तकरीबन 10 लाख पोलिंग बूथ बनाने होंगे और तकरीबन 13 लाख बैलेट यूनिट्स, 9.4 लाख कंट्रोल यूनिट्स और तकरीबन 12.3 लाख वीवीपैट मशीनों की जरूरत होगी। एक इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन की कीमत 33 हजार 200 रुपए पड़ती है। चुनाव आयोग का कहना था कि साथ चुनाव होते हैं तो अकेले ईवीएम पर ही 4 हजार 555 करोड़ रुपए खर्च होंगे।