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विनोबा का अनुशासन-पर्व!

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सर्वोदय जैसा पवित्र विचार और जय जगत जैसा उदात्त-चिंतन देने वाले आचार्य विनोबा भावे का 11 सितम्बर को जन्मदिन था। वे गांधीजी की वैचारिक-परम्परा को गति देने वाले ऋषि थे। अपने जीवन के अनेक वर्ष उन्होंने पदयात्रा में ही निकाल दिए. उनका भूदान आंदोलन पूरी दुनिया में अपने किस्म का अभिनव-प्रयोग था। मेरे पिता भी उनके अनुयायी थे। उनकी भूदान यात्रा में भी उन्होंने भाग लिया था। आज भूमाफियाओं का दौर है. सर्वोदय की जगह स्वंयमोदय का दौर है. पूंजीवादी मानसिकता ने करुणा के मूल तत्व को लगभग खत्म कर दिया है. ऐसे अराजक समय में हमें बार-बार गांधी और विनोबा की ओर ही निहारना पड़ता है, उनके विचारों का अवगाहन करना पड़ता है. उन्होंने जो चिंतन दिया, वो आज भी प्रासंगिक है. महान देश बनाने के अपने विचार को विनोबा ने निरंतर गति दी। सर्वोदय और भूदान का अलख जगाते हुए विनोबा देश के हर हिस्से में गए। खूब भूदान भी लिया और अपना चिंतन भी लोगों तक पहुंचाया। पदयात्रा के दौरान विनोबा छत्तीसगढ़ भी पधारे थे. उस दौरान उन्होंने जगह-जगह प्रवचन भी दिए थे. ये प्रवचन आज भी तरोताज़ा हैं। आज से पांच दशक पहले जो बातें विनोबा रखते थे, वे आज भी उतनी जरूरी हैं. चाहे वो ग्राम स्वराज्य की बात हो, चाहे सर्वधर्म सद्भाव की अथवा भाषा को लेकर। आचार्य विनोबा भावे को पन्द्रह से अधिक भाषाएं आती थी। लिख, पढ़ और बोल सकते थे। यह उनकी अद्भुत प्रतिभा का प्रेरक उदाहरण है। उन्होंने एक सुझाव दिया था कि सभी भारतीय भाषाओं को देवनागरी लिपि में भी लिखा जाए। इससे फायदा यह होगा कि लोग आसानी से और दूसरी भाषाओं को सीख सकेंगे । इस मामले में मेरा निजी अनुभव यही है। मुझे कुछ भाषाओं के गीत आज भी याद है क्योंकि मैंने उन्हें देवनागरी लिपि में पढ़ा। चाहे वह तेलुगु भाषा हो, उडिय़ा हो या तमिल। तेलुगु गीत देखें,योधरे वयशीवन्न शुभोदय के स्वागता। स्वराष्ट्रकास दल्लीका, सुप्रभात शुचिसुताम।… उडिय़ा का गीत, एई जन्म माटी ममता में प्रणे भरे थाऊ ,एहर लागी एहर कोने पारण मोर जाऊ। आचार्य जी ने एक और महत्वपूर्ण बात कही कि देवनागरी हिंदी की लिपि नहीं है यानी भारतीय भाषाओं के लिपि है। इस बात को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है। आपातकाल को उन्होंने अनुशासन पर्व कहा था। इस बात को लेकर के उनकी काफी आलोचना हुई थी, लेकिन अनुशासन पर्व उन्होंने क्यों कहा, इसको भी समझना होगा। अनुशासन का अर्थ होता है किसी नियम में बंध कर रहना। तो उस समय इंदिरा गांधी ने देश को अपने नियम में बांध कर रखा था, तो एक तरह से वह अनुशासन ही तो हुआ! अनुशासन पर्व में व्यंग्य की भी ध्वनि है। बाबा ने बहुत बड़ा व्यंग्य किया था। उन्होंने देश में गोवध पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिए आमरण अनशन शुरू किया था। दुर्भाग्य की बात यह रही कि गौवध पर प्रतिबंध का झूठा वादा करके उनका अनशन तुड़वा दिया गया था। उसके कुछ समय बाद ही बिनोवा भावे जी की मृत्यु हो गई उन्होंने स्नेहेन सहजीवनम का सुंदर मंत्र दिया। उन्होंने गीता का सुंदर भाष्य किया। कुरान की सुंदर आयतों का हिंदी में अनुवाद भी किया। महावीर और बुद्ध के वचनों को भी हिंदी में प्रस्तुत किया। वे चाहते थे कि भारतीय भाषाओं को देवनागरी लिपि में लिखा जाए। मेरा सौभाग्य है कि उनकी रचनावाली के पूरे अठारह खंड मेरी धरोहर हैं, जिन्हें समय-समय पर देखकर खुद को पुनरनवीन करता रहता हूँ। उनको नमन।