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विधानसभा चुनाव में जीत-हार के मायने

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दो राज्यों में विधानसभा चुनाव के साथ छत्तीसगढ़ में भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव के परिणाम घोषित हो गए। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। हिमाचल प्रदेश में मतदाता हर पांच साल में सरकार बदल देती है। यह मानसिकता गुरुवार को घोषित परिणाम में देखने को मिली जब कांग्रेस पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला है। चुनाव में हार जीत राजनीतिक प्रक्रिया के दो पहलु है। यह न तो स्थायी है और न ही अनुमान लगाया जा सकता है। जनता ने अपना मत किस उम्मीदवार या किस पार्टी के नाम कर दिया है। यह तो इवीएम की पेटी खुलने के बाद ही पता चलता है। लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद से मतदान होने तक राजनीतिक पार्टियां जिस तरह एक-एक सीट को जीतने के लिए अपना दमखम लगाती है, बहुमत प्राप्त करने के लिए योजनाएं और रणनीति बनायी जाती है। उसका लाभ भी चुनाव के परिणाम में मिलता है। अब गुजरात की बात करें तो 2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच एक कड़ी टक्कर देखी गई थी। भाजपा 100 का आंकड़ा भी नहीं छू पायी थी और कांग्रेस पार्टी ने 77 सीटों पर जीत हासिल की थी। भले ही भाजपा जीत गई, उसकी सरकार बन गई लेकिन कांग्रेस पार्टी ने जिस ताकत से चुनाव लड़ा उससे पूरे देश में एक संदेश गया। इसका मतलब है कि चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के मेहनत और उसका परिणाम देश भर में एक संदेश देता है। इस बार गुजरात में कांग्रेस पार्टी ने चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया। शायद आम आदमी पार्टी की सक्रियता के कारण पार्टी के नेताओं को लगा हो कि ज्यादा कुछ हासिल होने वाला नहीं है, इसलिए पूरी ताकत हिमाचल प्रदेश में क्यों न लगाई जाए? अगर यह रणनीति थी तो वह सही साबित हुए। हिमाचल प्रदेश में 68 में से 40 सीटें जीत कर कांग्रेस सफल हो गई। लेकिन गुजरात में 282 में से कांग्रेस केवल 17 सीटें ही जीत पायी। देश की सबसे पुरानी पार्टी का किसी बड़े राज्य में ऐसा प्रदर्शन पूरी राजनीति को प्रभावित करती है। लोकतंत्र में 2 मजबूत पार्टियों का होना आवश्यक है। एक तीसरा विकल्प भी होना चाहिए कि दोनों पार्टियों से जनता का मोह भंग हो जाए तो वह तीसरी को मौका दे। लोकतंत्र में अगर केवल सत्ता पक्ष ही मजबूत रहा और विपक्ष लगातार कमजोर होती जाए तो स्वस्थ लोकतंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए कांग्रेस पार्टी के आला नेता के विचार जो भी हो लेकिन छोटे से छोटे चुनाव को भी पूरे दमखम के साथ लडऩा चाहिए। यह बात भारतीय जनता पार्टी से सीखी जा सकती है। नगर निगम के चुनाव भी पार्टी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव की तरह लड़ती है। एक चुनाव खत्म होता है और दूसरे चुनाव की तैयारी शुरु हो जाती है। हार-जीत अपनी जगह है, लेकिन यह संदेश तो जाता है कि पार्टी हर चुनाव को गंभीरता से लेती है। हिमाचल प्रदेश में भाजपा भले ही हार गई हो लेकिन 25 सीटों पर जीत हासिल करके एक मजबूत विपक्ष के रुप में खड़ी हो गयी। इधर छत्तीसगढ़ के भानुप्रतापपुर सीट पर कांग्रेस पार्टी को जीत मिली है। पिछले 4 वर्षों में यह पांचवां उपचुनाव है और सभी में कांग्रेस पार्टी जीत कर आई है। 15 साल लगातार सत्ता में रहने के बाद 2018 में भाजपा को कांग्रेस के हाथों करारी हार मिली थी तब भाजपा के मात्र 15 विधायक चुनकर आए थे। भानुप्रतापपुर के उपचुनाव का अपना महत्व है। एक तो इस चुनाव के बाद केवल एक साल का समय है, जब विधानसभा के आम चुनाव होंगे। भाजपा लगातार संगठन को मजबूत और सक्रिय करने पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाने के लिए कोशिश कर रही है। अगर यह उपचुनाव भाजपा के पक्ष में जाता तो पार्टी को संजीवनी मिल जाती है, लेकिन ऐसा हो सका। कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सावित्री मंडावी ने भाजपा के उम्मीदवार ब्रह्मानंद नेताम को 21 हजार से अधिक मतों से पराजित कर दिया। इस चुनाव में सर्व आदिवासी समाज के उम्मीदवार अकबर कोर्राम ने भी 23 हजार से अधिक मत प्राप्त किए। स्वाभाविक है भाजपा खेमे में निराशा होगी और कांग्रेस का उत्साह चरम पर होगा। चुनाव घोषणा होने के बाद जिस तरह यह चुनाव संपन्न हुआ उससे कई सवाल उठते है। जिसकी चर्चा बाद में होगी।