Home इन दिनों विकास में भ्रष्टाचार की रुकावट

विकास में भ्रष्टाचार की रुकावट

42
0

देश में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। इस पर काबू पाने के लिए स्वतंत्रता के बाद लगातार कोशिश होती रही है लेकिन यह भी सच है कि जैसे-जैसे देश प्रगति के पथ पर है। देश और राज्यों के बजट का आकार जैसे-जैसे बढ़ रहा है भ्रष्टाचार की मात्रा भी बढ़ रही है। इसका सीधा मतलब यह है कि सरकार के बजट का एक बड़ा अनुपात भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ था तब इस राज्य के विकास के लिए एक उम्मीद जगी थी। महज 9 हजार करोड़ रुपए के बजट से राज्य का काम-काज शुरु हुआ और आज बजट का आकार एक लाख करोड़ को पार कर गया है। अगर साल दर साल इतनी मात्रा में धन जनता के हित कल्याण और विकास में लग रहा है तो फिर प्रदेश में आज भी गरीबी और बेरोजगारी एक गंभीर समस्या क्यों है? भ्रष्टाचार से प्रदेश का विकास और जनता का कल्याण प्रभावित होता है। एक सड़क बनती है तो उसे एक निश्चित समय के लिए मजबूती से काम करना चाहिए। लेकिन जब सड़क बनाने के लिए निविदा से लेकर निर्माण कार्य पूरा होने तक कमीशनखोरी होती है तो सड़क की क्वालिटी प्रभावित होती है। इसका मतलब है जो सड़क 10 साल की आयु तक अच्छी रहनी चाहिए वह 3-4 साल में ही जर्जर हो जाती है। अब उस सड़क पर चलने की आदी जनता तो फिर वही सड़क बनाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना पड़ता है। अब फिर निविदा बुलाई जाती है और फिर उसके निर्माण का चक्र शुरु हो जाता है। केवल इस उदाहरण से समझे तो ईमानदारी से बनी सड़क के बाद अगले 10 साल तक जो पैसे उस पर खर्च होने थे वे किसी अन्य कल्याणकारी योजना में खर्च हो सकते है। एक कद्दावर नेता का कथन स्मरण हो रहा है, वे कहते थे यदि स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक जनजाति क्षेत्रों में विकास के नाम पर जो पैसे खर्च हुए है अगर उन्हें सभी जनजाति परिवारों में बराबर-बराबर बांट दिए जाते तो बस्तर संभाग का हर व्यक्ति करोड़पति होता है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद विकास की जितनी गति बढ़ी उससे ज्यादा गति से भ्रष्टाचार बढ़ा है। मंत्री, नेता, अधिकारी जिनको मौका मिला सब दोनों हाथों से लूटे है। कुछ मामले का पर्दाफाश हो गया और बहुत से भ्रष्टाचार के मामले ऐसे भी है जिनके दोषी अनैतिक रुप से कमाए गए पैसे से मौज उड़ा रहे है। प्रदेश का भला चाहने वाली कोई भी सरकार अगर भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में सफल हो जाए तो इस देश की बुनियादी समस्याएं खत्म हो जाएंगी लेकिन समस्याओं को खत्म करना ही कौन चाहता है क्योंकि इन्हीं समस्याओं के नाम पर बजट बनता है और भ्रष्टाचार होता है।