Home बाबू भैया की कलम से नेता बताएं अप्रिय बयानबाजी से जनता का क्या भला ?

नेता बताएं अप्रिय बयानबाजी से जनता का क्या भला ?

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राजनीतिक बयानबाजी में निरंतर गिरावट दर्ज हो रही है। ऊंचे पद व प्रतिष्ठा में बैठे बड़े नेता भी घटिया बयान से अपने आप को नहीं बचा पाए रहे हैं। कुत्ता,कुकुर,बघुवा,थूक दो तो बह जाए सरकार, गुंडा ,ऐसे ना जाने कितने गिरे गए बयान सामने आते हैं। जिसे सुनकर आम जनता भी अपमान महसूस करती है। प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए भाजपा के बड़े नेता ने कुकुर जैसा संबोधन करके अपनी अजीबो गरीब राजनीति का परिचय दिया था। प्रदेश ही नहीं देश के नेताओं के बीच भी इसी तरह की बयानबाजी आये दिन आने लगी है। मुद्दे व देश की बात से हट कर व्यक्तिगत भौडें आरोप व संबोधन दिए जाने लगे हैं। यही राजनीति की धारा देश के नेताओं की वर्तमान सोच को दर्शाती है। उनकी अपनी राजनैतिक समझ को जनता के सामने लाती है। जनता उनके बारे में अपने विचार बनाती है। यह उस नेता को क्यों नहीं समझ में आता कि उसके बयानों का असर जनता पर क्या पड़ेगा ? गैर जिम्मेदाराना बयानों में सिर्फ एक पार्टी या व्यक्ति का दोष नहीं है। सभी दलों के नेतागण आजकल कुछ भी बोले चले जा रहे हैं। देश की समस्याएं एक तरफ रह जाती हैं। देश की जनता इन लापरवाह बयानों में ही उलझ कर अपने भविष्य के बारे में सोचने लगती है। हमारे भाग्य विधाताओं को आखिर ये हो क्या गया है ? समस्याओं को सुलझाने की जगह उल जलूल बयानों के कारण बेवजह कटुता का माहौल बनाने में लगे हैं। एक बयान गलत आता है तो बयान के जवाब में दूसरा बयान सामने से उससे बुरा आ जाता है। आरोप प्रत्यारोपों के इन बयानों से ना प्रदेश का भला होता ना देश का ही भला होता है। देश के सामने महंगाई ,बेरोजगारी,पेट्रोल -डीजल, देश की सीमा की रक्षा, देश की गंगा जमुनी तहजीब व आपसी भाईचारे की रक्षा, गरीबी, भूखमरी, किसान की तकलीफ, शराबखोरी की बढ़ती आदतें, आतंकवाद,नक्सल समस्या, ऐसी ना जाने कितनी समस्याएं देश व राज्य में मौजूद हैं। इन समस्याओं से देश की जनता त्राहि त्राहि कर रही है। उसकी चर्चा से बच कर व्यक्तिगत आरोपों में जनता को भटकाने का प्रयास क्या जनहित की राजनीति कहला सकती है। कुत्ता- गुंडा-बघुवा-थूक- इन बातों से किसी को क्या मिलने जुलने वाला है। आजादी के बाद जिन भी नेताओं ने देश चलाया या देश को आगे बढऩे में मदद की उन लोगों ने इस तरह कभी मर्यादा छोड़ी हो यह उदाहरण देखने में नहीं आया। अधिकांशत: देश हित में पक्ष विपक्ष ,जाति- भेदभाव ,वर्ग भावना से दूर देशहित सर्वोपरि रहा है। नेहरू से लेकर इंदिरा युग आने के पहले तक कभी ऐसे भौंडी भाषा कभी सुनाई नहीं देते थे। पक्ष विपक्ष के नेता एक दूसरे का सम्मान करते थे। जरूरत पडऩे पर विपक्ष के साथियों का भी देशहित में उपयोग किया करते थे। किसी के अच्छे कामों की सराहना भी की जाती थी। देश पर संकट के समय एक स्वर व एक मंच पर सब बात करते थे। इसके एक नहीं अनेक उदाहरण तब की राजनीति में मौजूद हैं। आज स्थिति उसके विपरीत जाती दिखाई दे रही है। इंदिरा गांधी -राजीव गांधी-मोरारजी देसाई-नरसिम्हाराव-अटलबिहारी बाजपेयी-बीपी सिंह- गुजराल-चंद्रशेखर-देवेगौड़ा-मनमोहन सिंह-चरणसिंह के कार्यकाल को भी देखें तो राजनैतिक कटुताएँ भले ही दिखाई देती रहीं हैं। ऊलजलूल बयानबाजी अपवाद स्वरूप ही दिखाई पड़ती थी कुछ तो भाषा की मर्यादाएं थी। प्रदेश की बात करें तो हमारे प्रदेश में प्रारम्भिक उदयकाल में ही कड़े शब्दों वाली राजनीति शुरू हो गई उस परम्परा में शनै:शनै: इजाफा होता दिखाई दे रहा है। यह नहीं होना चाहिए। सभी को यह सोचना ही होगा कि इन भद्दे आरोपों व बयानों से जनता का आखिर क्या भला होगा। और यह भी कि जनता का भला होगा तो किस माध्यम से होगा और उसी राह पर अपने कदम बढ़ाना चाहिए। गंदे व निचले स्तर की भाषा का त्याग करना चाहिए। वर्तमान राजनीति की मांग भी यही है।