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टी.एस. सिंहदेव का राजनीतिक भविष्य

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2022 का साल विदा होने को है, जैसे ही कैलेण्डर 2023 का चढ़ेगा वैसे छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का वातावरण बनने लगेगा। राज्य बनने के बाद पहली बार चुनाव जीतकर सत्ता में बैठी कांग्रेस पार्टी के लिए आगामी चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए नहीं कह सकते है क्योंकि 15 साल के लंबे शासन के लिए एंटी-इनकमबैंसी माहौल के चलते 2018 का विधानसभा का चुनाव जितना कांग्रेस जीती नहीं उससे ज्यादा भारतीय जनता पार्टी चुनाव हारी है। अब 2023 का चुनाव कांग्रेस पार्टी को जीतना होगा। जिस प्रकार का बहुमत 2018 में मिला वह तो 1990 के बाद ऐतिहासिक ही रहा, इसलिए फिर वही चमत्कार होगा इसकी संभावना कम है। पिछले चुनाव में कांग्रेस पार्टी की जीत के पीछे जो भी कारण रहे उसमें एक बड़ा कारण पार्टी के सभी बड़े नेताओं का एकजुट होकर चुनाव लडऩा था। सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री कोई एक ही बनता है। इसलिए वरिष्ठ नेताओं के बीच में अनबन और गुटबाजी सामान्य बात है। कांग्रेस पार्टी के लिए तो यह और अधिक सामान्य है। पिछले चुनाव के बाद 4 वरिष्ठ नेताओं को खुश करने का प्रयास किया गया। डॉ. चरणदास महंत विधानसभा के अध्यक्ष बन गए, भूपेश बघेल के मंत्रिमंडल में टी.एस. सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू वरिष्ठ मंत्री के रुप में शामिल हुए। ये तीनों मंत्री को पार्टी हाईकमान ने समकक्ष माना था तभी तो सबसे पहले शपथ लेने वालों में ये तीन मंत्री शामिल थे। ढाई साल तक सब कुछ ठीक चलता रहा। जून 2021 में जैसे ही ढाई वर्ष पूरे हुए मंत्रिमंडल में वरिष्ठ मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने ढाई साल मुख्यमंत्री का मुद्दा छेड़ दिया। इसके बाद तो मामला दिल्ली तक पहुंच गया और इस बीच कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने अपने मंत्री टी.एस. सिंहदेव के खिलाफ में गंभीर आरोप लगाते हुए मोर्चा खोल दिया। तब से लेकर आज तक एक बात तो तय है कि टी.एस. सिंहदेव और मुख्यमंत्री के बीच में व्यवहार सामान्य नहीं है। ऐसा लगता है टी.एस. सिंहदेव हिमाचल प्रदेश चुनाव के कारण कुछ समय तक शांत बैठे थे क्योंकि उनकी बहन आशा कुमारी हिमाचल प्रदेश में चुनाव लड़ रही थीं और मुख्यमंत्री पद की दावेदार भी थीं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हिमाचल प्रदेश के प्रभारी थे और हिमाचल में कांग्रेस पार्टी अच्छे बहुमत से सरकार बनाने में सफल रही लेकिन आशा कुमारी चुनाव हार गईं। अब ऐसा लगता है कि टी.एस. सिंहदेव फिर से मुखर होंगे और ऐसा उन्होंने अपनी राजनीतिक भविष्य के फैसले को लेकर मीडिया के सामने जो बात कही उससे भी स्पष्ट होता है। चुनाव के पहले वे कांग्रेस में रहकर चुनाव लड़ेंगे या कांग्रेस के बाहर रहकर, यह देखने वाली बात होगी। हालांकि बाबा आचार-विचार से कांग्रेसी है और इस भावना को उन्होंने समय-समय पर उजागर भी किया है।