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प्रदेश में बन रहा गोबर का पेंट

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छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने अनेक योजनाएं संचालित कर रही है। गोबर खरीदने की योजना एक चुनौतीपूर्ण किन्तु महत्वपूर्ण है। खरीदे गए गोबर से वर्मी कम्पोस्ट सहित अन्य उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करने में लगी महिला स्वसहायता समूह की भी आर्थिक स्थिति सुधारने की मंशा है। वैसे तो देश स्वतंत्र होने के बाद ही विकेंद्रीकृत ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाली नीति बनाने की आवश्यकता थी। स्वतंत्रता के बाद पं. नेहरु ने अपनी मिश्रित अर्थव्यवस्था में बड़े उद्योगों की स्थापना पर अधिक जोर दिया और गांधी के ग्रामीण उद्योगों की अवधारणा को दरकिनार कर दिया गया। स्वतंत्रता के पहल प्रसद्धि गांधीवादी जेसी कुमार अप्पा गांधीवादी अर्थनीति एक पुस्तक लिखकर देश की भावी अर्थनीति की रुपरेखा प्रस्तुत की थी। लेकिन स्वतंत्र भारत में वह नीति चली नहीं। यह अच्छी बात है जब पूरी दुनिया उदारीकरण, वैश्वीकरण और बड़े उद्योग घरानों को बढ़ावा दे रही है, वहीं छत्तीसगढ़ में ग्रामीण अर्थनीति को लेकर प्रदेश सरकार सोच रही है। अभी प्रदेश में बन रहे गोबर के पेंट की बड़ी चर्चा हो रही है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गोबर पेंट से सभी शासकीय भवनों के रंगरोगन को अनिवार्य करने के निर्णय की प्रशंसा की। इस बात से प्रदेश सरकार उत्साहित है। होना भी चाहिए क्योंकि प्रदेश सरकार की किसी कार्य को राष्ट्रीय स्तर स्वीकार्यता जो मिली है। लेकिन इससे आत्ममुग्ध होकर चुप नहीं बैठा जा सकता। अगर गोबर से पेंट बनाकर महिला स्वसहायता समूहों को आर्थिक रुप से सक्षम बनाना है तो समूहों की महिलाओं के तकनीकी और व्यवसायिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी होगी। दूसरी ओर गोबर से पेंट केवल छत्तीसगढ़ ही नहीं बना रहा। खादी ग्रामोद्योग आयोग की मदद से अनेक राज्यों में गोबर से पेंट बनाए जा रहे है। सरकार स्वसहायता समूहों को संरक्षण देकर उन्हें लाभ पहुंचा सकती है लेकिन पेंट के उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता दोनों को बढ़ाकर आम जनता को इसके प्रति आकर्षित किया जा सकता है। जब जनता बाजार से यह पेंट खरीदेगी तब इस कार्य को सफलता मिलेगी। केवल सरकारी संरक्षण से व्यापार या उद्योग ज्यादा दिन नहीं चल सकता। उनका हश्र वैसे ही होता है जैसे पं. नेहरु के काल में बने सार्वजनिक उपक्रमों का हो रहा है।