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विधानसभा में कामकाज ठप

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संसदीय लोकतंत्र में विधानसभा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। छत्तीसगढ़ विधानसभा का शीतकालीन सत्र दो हिस्सों में बंट गया जिसका पहला हिस्सा विशेष सत्र के रुप में 2 दिसम्बर को आहूत किया गया। एक लंबे अवकाश के बाद सोमवार 2 जनवरी से पुन: प्रारंभ हुआ। 1 माह पूर्व विधानसभा में आरक्षण का विधेयक पारित किया गया था जिस पर राज्यपाल की अनुमति नहीं मिल पायी है। इस मुद्दे पर सदन में जमकर हंगामा हो रहा है। पहले और दूसरे दिन बमुश्किल प्रश्नकाल ही संपन्न हो सका, जबकि विधानसभा की कार्य सूची में अनेक महत्वपूर्ण राजकीय कार्य का उल्लेख किया गया था। मंगलवार को 2 विधेयक सदन के पटल पर रखा जाना था जिसमें छत्तीसगढ़ जुआ प्रतिषेध विधेयक और अनाधिकृत विकास का नियमितीकरण का संशोधन विधेयक था। आरक्षण विषय पर हंगामा होने के कारण विधेयक प्रस्तुत नहीं किए जा सके। ध्यानाकर्षण पर भी चर्चा नहीं हो सकी। प्रश्नोत्तरी शांतिपूर्ण आज संपन्न हुआ। विधानसभा में विभिन्न विषयों पर चर्चा की जाती। राज्य में अनेक ऐसे मुद्दे है जिस पर सदन में चर्चा होनी चाहिए। धर्मान्तरण को लेकर बस्तर जल रहा है। अगर इस पर फौरी तौर पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। इस विषय पर अगर विधानसभा में चर्चा हो तो इसके सुखद परिणाम निकल सकते है। वैसे तो विपक्ष ने प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था पर स्थगन लेकर आए थे लेकिन उसकी अनुमति विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नहीं दी गई। इस विषय पर अगर स्थगन प्रस्ताव के जरिए चर्चा हो जाती तो समस्या की महत्वपूर्ण बिन्दु सामने आती। स्थगन पर जब चर्चा अस्वीकृत कर दी गई तब भाजपा के सदस्य गर्भगृह में आकर स्वमेव निलंबित हो गए। इन सब हंगामे के बीच में दिनभर के लिए सभा की कार्रवाई स्थगित कर दी गई। स्थगित तो इसलिए भी हो गयी क्योंकि कांग्रेस पार्टी का जन अधिकार रैली का आयोजन राजधानी में किया गया था, जिसमें कांग्रेस पार्टी के मंत्रियों और विधायकों को शामिल होना था। इस प्रकार जो चर्चा विधानसभा के सदन में हो सकती है उसे सार्वजनिक तौर पर रैली के माध्यम से करना विधानसभा के प्रति कम होती आस्था को दर्शाता है। विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान भी बार-बार विधानसभा अध्यक्ष की ओर से यह हिदायत मंत्रियों को दी जा रही है कि वे तैयारी कर सदन में आए। इसका मतलब है कि मंत्री विधानसभा की कार्रवाई को लेकर गंभीर नहीं है। संसदीय लोकतंत्र के मंदिर के प्रति निर्वाचित प्रतिनिधियों की आस्था कम होगी तो यह लोकतंत्र को कमजोर करेगा।