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राजनीतिक छेरछेरा

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छत्तीसगढ़ के लोकपर्व में छेरछेरा का विशेष महत्व है। दरअसल ये कोई उत्सव नहीं है, यह एक ग्रामीण जीवन शैली और आम लोगों के बीच के सौहाद्र्र संबंध को दर्शाता है। वैसे तो इस पर्व की पहचान दान लेने से है और सामान्य तौर पर इस दिन शहरों में बच्चे टोलियां लेकर सुबह-सुबह छेरछेरा मांगने निकल जाते हैं। ग्रामीण संस्कृति से दूर हुए समाज को यह एक दीक्षा के तौर पर प्रतीत होता होगा, लेकिन इसका आशय बहुत विस्तृत है। पहली बात तो छेरछेरा के दिन जाति, वर्ग को भुलाकर हर कोई गांव में छेरछेरा मांगने निकल पड़ता है। अब तो गांव में भी छेरछेरा का पर्व बहुत उत्साह के नहीं मनाया जाता लेकिन आज से 40-50 वर्ष पूर्व बड़े किसान के बच्चे हों या भूमिहीन मजदूर के बच्चे हर कोई छेरछेरा मांगने निकल पड़ते थे, अकेले या तो टोली बनाकर। और छेरछेरा मांगने वाले की भी आर्थिक और सामाजिक स्थिति नहीं देखी जाती थी। कितना अजीब दृश्य होता था जब एक दाऊ या मालगुजार के घर का बच्चा छोटे किसान के घर जाकर छेरछेरा का दान मांग रहे। इससे समाज में ऊंच-नीच का भेद खत्म हो जाता था। स्कूल के बच्चे को लेकर शिक्षक भी छेरछेरा मांगने निकल जाते थे और इन्हें घर-घर से खूब दान मिलता था। पहले स्कूल चलाने के लिए धन इकटठा करने का माध्यम भी छेरछेरा था अब स्थिति बदल गई है, अपने पर्व को मनाने में भी बच्चे संकोच करते हैं। आधुनिक मोबाईल और टेलीविजन के युग ग्रामीण संस्कृति के प्रति आकर्षण खत्म हो रहा है। लेकिन पिछले चार वर्षों से छत्तीसगढ़ में लोकपर्व और परंपराओं को मनाने का उत्साह राजनीतिक क्षेत्र में बढ़ा है। इस बात का श्रेय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जाता है, क्योंकि वे स्वयं छत्तीसगढ़ के लोकपर्व और परंपराओं को बढ़-चढ़कर मनाते हैं। छेरछेरा मांगने वे भी शुक्रवार को सड़कों पर निकले। वैसे अब तो शहरों में धान किसी के पास होता नहीं इसलिए नगद पैसा देकर बच्चों की इच्छा पूरी की जाती है। पर मुख्यमंत्री को धान से तौला गया। जिस प्रकार गांव में स्कूल की व्यवस्था चलाने के लिए गुरु जी के साथ निकले बच्चों को छेरछेरा का दान दिल खोलकर मिलता है, उसी प्रकार शासन को समाज के बीच जाकर जनकल्याण के लिए छेरछेरा का दान मांगना चाहिए। वैसे तो राजनीति चंदा लेने की अपनी व्यवस्था है, लेकिन छेरछेरा के अवसर पर जो दान मिल जाएं, उसे लोककल्याण में लगाने का संकल्प होना चाहिए। इस प्रकार अब छेरछेरा ग्रामीण लोक जीवन से निकलकर राजनीति के क्षेत्र में प्रभावशाली है। इससे एक बात तो तय है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ संस्कृति और जो बढ़ावा मिला वह राजनीति ही सही लेकिन जनमानस में उसका असर हो रहा है।