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जेब में पैसा और शराब की बिक्री

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प्रदेश में कांग्रेस सरकार को चार साल पूरे हो गए है लेकिन 2018 चुनाव के पहले कांग्रेस द्वारा जारी किए जनघोषणा पत्र के कई महत्वपूर्ण वादे पूरे नहीं हुए। इनमें शराबबंदी प्रमुख है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बार-बार यह कहते है कि धान की अच्छी कीमत देकर वे किसानों की जेब में पैसा डाल रहे है। यह बात सही भी है क्योंकि समर्थन मूल्य से लगभग प्रति क्विंटल 600 रुपए अधिक किसानों को मिल रहा है। लेकिन क्या जेब में पैसा डालने वाले नारे से सरकार का उद्देश्य पूरा हो जाता है। अर्थव्यवस्था का एक सिद्धांत है कि लोगों की जेब में जब पैसा आता है तो वस्तुएं की कीमतें बढ़ जाती है। यह तो अर्थशास्त्रियों के लिए शोध का विषय है कि किसानों की जेब में पैसा डालने का महंगाई पर कितना असर पड़ा। यह भी शोध होना चाहिए कि 4 वर्षों में 25 सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर से जो कीमत किसानों को मिल रही है उससे किसान समुदाय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कितना विकास हुआ। एक बात जो तय है कि जब जनता के हाथ में पैसा आता है तो उसका दुरुपयोग भी करते है। प्रदेश में शराब की बढ़ती खपत और सरकार को उत्पाद शुल्क से मिलने वाले राजस्व में उत्तरोतर बढ़ोत्तरी इस बात को साबित करती है। वर्ष 2006-07 में राज्य के उत्पाद शुल्क से 706 करोड़ रुपए की आय होती थी जिसमें 256 करोड़ देशी शराब और 243 करोड़ विदेशी शराब की बिक्री से मिलते थे। जब 1 रुपए किलो चावल की योजना चली उसके बाद से 2017-18 तक शराब की बिक्री से सरकार को होने वाली आय 4 हजार 53 करोड़ हो गई। इसमें देशी शराब लगभग 2 हजार करोड़ रुपए और विदेशी शराब से 1हजार 26 करोड़ रुपए की आय बढ़ी। इसका मतलब है कि 1 रुपए किलो चावल से जो आर्थिक लाभ हुआ उससे देशी शराब की बिक्री 10-11 वर्षों में 9 गुना हो गई। अब जब किसानों को धान की अच्छी कीमत मिल रही है तो राज्य में उत्पाद शुल्क से आय 6 हजार करोड़ के आसपास पहुंच गई है। 2020-21 में यह 4 हजार 635 करोड़ रुपए थी। रोचक बात यह है कि देशी शराब से आय 2017-18 की तुलना में कम होकर 15 सौ 74 करोड़ हो गई। जबकि विदेशी शराब से प्रदेश की आय 2017-18 की तुलना में 6 सौ करोड़ रुपए से अधिक बढ़ गई। इसका मतलब है कि लोग अब विदेशी शराब ज्यादा पी रहे है। अब सरकार शराबबंदी कर देती तो संभव है गांव की समृद्धि और अधिक दिखाई देती। शराब के बढ़ते कारोबार से महिलाएं परेशान है, अपराध बढ़ रहे है। किसानों की जेब में पैसा डालने के इस दुष्प्रभाव पर सरकार को चिंतन करना चाहिए।