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ठेलों-खोमचों की बढ़ती संख्या

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रायपुर शहर का निरंतर विस्तार हो रहा है। यहां की आबादी भी बढ़ती जा रही है। आज से 15 वर्ष पूर्व जब नई राजधानी का निर्माण होने लगा तब पुराने रायपुर शहर को व्यवस्थित करने के लिए सड़कों का जाल बिछा। शहर के किनारे कॉलोनियां बसने लगी और देखते ही देखते शहर का दायरा कई किलोमीटर बढ़ गया। अब सवाल यह है कि रायपुर राजधानी में जो जनसंख्या बढ़ी है वह किस वजह से है? पहला कारण तो राजधानी बनने के बाद मंत्रालय सचिवालय सहित अन्य कार्यालयों में काम करने आए कर्मचारियों-अधिकारियों के कारण जनसंख्या बढ़ी। नए राज्य में व्यापार, उद्योग में बढ़ोतरी हुई और यहां भी काम करने वाले रायपुर में आकर बसते गए। आसपास के गांव से भी बड़ी संख्या में ग्रामीण पलायन कर रायपुर में बसते चले गए। इन सबके अलावा उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा जैसे पड़ोसी राज्यों से बड़ी संख्या में ठेले-खोमचे लगाने वाले छोटे व्यापारी राजधानी रायपुर में बढ़े है। पिछले 2-3 वर्षों में ठेले-खोमचे लगाने वाले व्यापरियों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। अब स्थिति यह है कि आप किसी भी सड़क से गुजरे सड़क के किनारे ठेले-खोमचे लगाने वाले चाट पकौड़ी गुपचुप बेचने वाले मिल जाएंगे। यह ठेले खोमचे लगाने वाले कहां से आए है, इसका कोई व्यस्थित रिकॉर्ड पुलिस के पास है भी या नहीं इसमें संदेह है। राजधानी में अपराध की दर भी बढ़ी है। पिछले कुछ वर्षों में दूसरे प्रदेशों से ऑटो चलाने या ठेला-खोमचा चलाने के नाम पर आए अपराधियों ने बड़ी वारदातों को अंजाम दिया है। इसलिए राजधानी में जो छोटे व्यापारी काम कर रहे है उन पर निगरानी की आवश्यकता है। वैसे तो केंद्र सरकार ने स्ट्रीट वेंडर्स अधिनियम पारित किया हुआ है। इस कानून के हिसाब से सड़क किनारे ठेले-खोमचों लगाने वालों का पंजीयन कर उन्हें स्थायी व्यवस्थापन करना है। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि राजनेता अपना वोट बैंक साधने के लिए ऐसे ठेले-खोमचों वालों को राजधानी में लाकर बसा रहे है। इसका दुष्परिणाम यातायात व्यवस्था में बदहाली के रुप में देखा जा सकता है। सड़कें भले ही चौड़ी हो गई हो लेकिन ठेले-खोमचों के जगह घेरने और वहां पर ग्राहकों की भीड़ के कारण यातायात प्रभावित हो रहा है। वैसे तो कानून कहीं पर भी ठेला लगाना प्रतिबंधित है लेकिन नेताओं के संरक्षण में ऐसा किया जा रहा है। प्रशासन को इस बात पर गौर करना चाहिए यातायात प्रभावित होने के कारण राजधानी में बूढ़ापारा स्थित धरना स्थल को बदलने की मांग की जा रही है। ठेले-खोमचों का भी व्यवस्थापन होना चाहिए।