कांग्रेस पार्टी के लिए संगठन के भीतर कलह होना या बड़े नेताओं की गुटबाजी के कारण विवाद होना कोई नई बात नहीं है। यही आश्चर्य का विषय है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के समय पार्टी एकजुट होकर कैसे लड़ी? 2003-2018 के बीच ज्यादातर चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार के पीछे बड़े नेताओं की आपसी लड़ाई बहुत हद तक जिम्मेदार थी। पूर्व प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने विधानसभा चुनाव के पहले सभी बड़े नेताओं को एकसूत्र में पिरो दिया था। लेकिन सरकार बनने के बाद जब मोहन मरकाम प्रदेश के अध्यक्ष बने उसके बाद सत्ता और संगठन के बीच मनमुटाव शुरु हो गया है। अभी कांग्रेस पार्टी के आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी संगठन महामंत्री अमरजीत चावला को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। यह नोटिस उस शिकायत के बाद जारी किया गया है जिसमें रायपुर में हो रहे कांग्रेस पार्टी के अखिल भारतीय महाधिवेशन के आयोजन समिति में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविन्द नेताम का नाम कर दिया गया था। पिछले दिनों भानुप्रतापपुर में हुए उपचुनाव के दौरान अरविन्द नेताम ने सर्वआदिवासी समाज के उम्मीदवार के पक्ष में बयान दिया था। स्वाभाविक है कि यह पार्टी विरोधी गतिविधि में आता है लेकिन दो माह बीत गए कांग्रेस पार्टी ने उनके पार्टी विरोधी गतिविधि के कारण कोई नोटिस जारी नहीं किया गया। इसका मतलब है कि अरविन्द नेताम अभी भी कांग्रेस पार्टी के नेता है। दूसरी ओर उनकी वरिष्ठता और केंद्र में मंत्री होने के व पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के निकट होने के कारण केंद्र के बड़े कांग्रेसी नेता उनका सम्मान करते है। नवनियुक्त प्रदेश प्रभारी हरियाणा से आई कुमारी शैलजा का भी अरविन्द नेताम के प्रति सम्मान है। संभव है कि यह आयोजन समिति में अरविन्द नेताम का नाम शामिल करने की पहल स्वयं प्रदेश प्रभारी ने की हो। इस आधार पर प्रभारी संगठन महामंत्री अमरजीत चावला ने जो सूची जारी कि उसमें अरविन्द नेताम का नाम आ गया। दूसरी ओर इस घटना के कारण संगठन के भीतर अध्यक्ष मोहन मरकाम और प्रभारी महामंत्री के विरोधियों को उनके खिलाफ माहौल बनाने का एक अवसर मिल गया। केंद्रीय नेतृत्व से भी तो प्रदेश अध्यक्ष की भी शिकायत की गई थी। लेकिन नोटिस अरविन्द नेताम और अमरजीत चावला के नाम जारी किया गया है। यह घटना कांग्रेस पार्टी में सत्ता और संगठन के बीच वर्चस्व की लड़ाई की ओर इशारा करता है। चुनाव के पहले सत्ता और संगठन की यह लड़ाई पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है। कांग्रेस पार्टी को एकजुट बनाए रखने के लिए समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी प्रदेश प्रभारी महासचिव की है।