भारतीय जनता पार्टी बार-बार प्रदेश की भूपेश सरकार पर आरोप लगाती है कि छत्तीसगढ़ को ईडी और सीडी मामले ने बदनाम कर दिया है। पिछले लगभग 3 वर्षों से प्रदेश के बड़े अधिकारियों, कारोबारियों और नेताओं पर छापा मारने का एक लंबा सिलसिला है। इसकी शुरुआत 2020 में हुई थी जब प्रदेश के उच्च अधिकारियों के घर पर आयकर विभाग ने दबिश देकर सर्वे किया था। इस कार्रवाई में कम्प्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल सहित बड़ी मात्रा में दस्तावेज जब्त कर विभाग अपने साथ ले गया। उसके बाद प्रदेश में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की एन्ट्री हुई। अभी जब अखिल भारतीय कांग्रेस का बड़ा अधिवेशन रायपुर में होने वाला है उसके ठीक पहले ईडी ने प्रदेश के 12 कांग्रेस नेताओं के ठिकानों पर छापा मारा है। इस घटना ने पूरे देश में एक राजनीतिक सनसनी पैदा कर दी है। दिल्ली से लेकर रायपुर तक कांग्रेस पार्टी ईडी की कार्यवाही को राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाते हुए कांग्रेस पार्टी के महाधिवेशन में व्यवधान उत्पन्न करने का षडय़ंत्र बताया। यह बात सही है जब किसी राष्ट्रीय पार्टी का एक अति महत्वपूर्ण महाधिवेशन होने जा रहा हो जिसमें पूरे देश से दिग्गज कांग्रेसी नेता आ रहे हों उसके ठीक पहले इस कार्यक्रम की तैयारी में जुटे नेताओं के ठिकानों पर छापा मारना समय की दृष्टि से सही नहीं है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि अगर राजनीतिक निर्देश के आधार पर ईडी कार्रवाई कर रही है तो कम से कम किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यक्रम के पहले छापेमारी नहीं की जाती। इससे ऐसा लगता है कि छापेमारी का निर्णय ईडी के अधिकारी ले रहे है जो राजनीति के महत्व को नहीं समझते। अगर ईडी के पास पुख्ता सबूत और जानकारियां है तो छापा मारने के लिए कांग्रेस पार्टी के महाधिवेशन के संपन्न हो जाने की प्रतीक्षा भी कर सकते थे। इस कार्रवाई के बाद कांग्रेस पार्टी भी आक्रमक मूड में आ गई है। पहले तो जिन नेताओं के ठिकानों पर छापेमारी की गई वहां कांग्रेस कार्यकर्ता बड़ी संख्या में पहुंच कर विरोध जताने लगे तो दूसरी ओर मंगलवार को ईडी के कार्यालय का कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने घेराव किया। इधर मुख्यमंत्री सहित पार्टी के नेता ईडी की कार्रवाई के खिलाफ बयान भी दे रहे है। मुख्यमंत्री सवाल उठा रहे है कि ईडी की कार्यवाही कांग्रेस पार्टी और गैर भाजपाई दलों के नेताओं के खिलाफ ही क्यों हो रही है। उन्होंने भाजपा के नेताओं की काली कमाई की ओर भी उंगली उठाई है जिसके खिलाफ ईडी कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। वैसे इस बात में दम तो है क्योंकि देशभर के भाजपा के नेताओं ने भी जब मौका मिला तो मोटी कमाई की है। लेकिन आंकड़े के मुताबिक पिछले 8 वर्षों में ईडी ने 5 हजार से अधिक छापामार की है जिसमें से 90 प्रतिशत गैर भाजपाई दल के नेता है। लेकिन प्रदेश में ईडी की कार्रवाई के बाद एक दर्जन से ज्यादा अधिकारी और कारोबारी गिरफ्तार है और उनके खिलाफ में कोर्ट में चालान भी प्रस्तुत किया जा चुका है। इन दस्तावेजों में ईडी ने बहुत स्पष्टतौर पर अधिकारियों, कारोबारियों और नेताओं के बीच कोयले के कारोबार में कथित अवैध लेनदेन का साक्ष्य सहित विवरण किया है। इसी आधार पर गिरफ्तार किए गए अधिकारियों को कोर्ट से जमानत नहीं मिल रही है। इसका मतलब है कि कोयले के कारोबार में सैकड़ों करोड़ रुपए का अवैध लेनदेन तो हुआ है। अब दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हों तो भ्रष्टाचार पर नकेल कैसे डाल सकेंगे? इसका मतलब है कि ईडी की कार्रवाई सही है और इस कार्रवाई में 540 करोड़ रुपए के घोटाले को भी कोई झूठला नहीं रहा है। बात केवल छापे के समय और चिन्हित राजनीतिक पार्टी और नेताओं को लेकर सवाल खड़े हो रहे है। ईडी की जांच अब उस स्तर तक पहुंच चुकी है जब कोयला सहित शराब और अन्य कारोबार में हुई गड़बडिय़ों का खुलासा होगा और कई अधिकारी, कारोबारी और प्रमुख नेता जांच के लपेटे में आएंगे। यह तो स्पष्ट हो गया है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार और ईडी की कार्रवाई प्रमुख मुद्दा बनने जा रहा है। इसके साथ राजनीतिक कटुता भी बढ़ रही है जो बयान की मर्यादाओं को लांघ रही है।