भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के बाद कांग्रेस पार्टी का छत्तीसगढ़ में पहला अधिवेशन रायपुर में संपन्न हुआ। देशभर से हजारों की संख्या में पार्टी के बड़े नेता रायपुर आए और पार्टी की भूत, वर्तमान और भविष्य पर चिंतन-मनन किया। आयोजन की दृष्टि से कांग्रेस महाधिवेशन सफल रहा। पहली सफलता तो सुव्यवस्थित एवं भव्य आयोजन को लेकर रही तो दूसरी सफलता कांग्रेस पार्टी अपने संविधान में संशोधन कर 2 दिनों में 6 प्रस्ताव पारित किया जिससे पार्टी को इस वर्ष अनेक राज्यों में होने वाले चुनाव और आगामी वर्ष लोकसभा के महत्वपूर्ण चुनाव के लिए कार्यकर्ताओं को दृष्टि मिली। इस सफलता के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कद भी राष्ट्रीय स्तर पर निश्चित बढ़ा होगा। तमाम सफलताओं के बीच में 2-3 बातों पर गौर करने की जरुरत है। पहली बात तो यह कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में देश की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी गई। इस लड़ाई में वैचारिक स्पष्टता थी जिसके आधार पर स्वतंत्रता के बाद संविधान में प्रावधान किए गए। संविधान सभा की चर्चा हो रही थी तब जनजातीय, सामाजिक समरसता, मौलिक अधिकार को लेकर लंबी बहस हुई थी। देश की राजनीति 1950 से लेकर 1990 तक कांग्रेस पार्टी के इर्द-गिर्द ही घूमती रही। पं. जवाहर लाल नेहरु ने समाजवादी दृष्टिकोण के साथ मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति बनाई जिसे 1991 में पी.व्ही. नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने बदलकर उदारीकरण की नीति अपना ली। पिछले 70 वर्षों के दौरान राष्ट्रीय महत्व की दृष्टि से जिस प्रकार की नीति पर कांग्रेस चलती रही उस दृष्टि में एक बदलाव रायपुर के अधिवेशन में पारित 6 प्रस्तावों में देखा जा सकता है। मसलन, कृषि संबंधी प्रस्ताव को लेकर कृषि ऋण की वसूली, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उपज की खरीदी और कृषि मजदूरों के हितों की रक्षा को लेकर जो प्रावधान किए गए है वह छत्तीसगढ़ से प्रेरित लगते है। देशभर में किसानों को न्याय योजना के तहत प्रति एकड़ 10 हजार रुपए सब्सिडी देने की बात प्रस्ताव में कही गई है। जो पार्टी 70 में से 50 वर्षों तक सरकार में रही वह किसानों और खेती की बदहाली को दुरुस्त करने के लिए न्याय योजना की बात करें तो मान लेना चाहिए कि अब तक भारत की कृषि नीति असफल रही है। इसी तरह सामाजिक प्रस्ताव में जनजातीय धर्म को जनगणना में अलग स्थान देने की मांग को स्वीकार करना व जातीय जनगणना का वादा करना भी कांग्रेस पार्टी की पिछले 70 वर्ष की सामाजिक नीति में बदलाव है। यह बदलाव किसी भी हाल में चुनाव जीतने और सरकार बनाने के लिए किया गया है, ऐसा लगता है।