देश में उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालयों के स्थापना के बाद उसके प्रमुख को कुलपति शब्द से संबोधित किया जाने लगा। विश्वविद्यालय में कुलपति का अधिकार सर्वोच्च होता है, यहां तक कि प्रशासनिक अमला भी बिना कुलपति की अनुमति के विश्वविद्यालय परिसर में नहीं जा सकता था। समय के साथ परिस्थितियां बदली है और कुलपति पद, शब्द, और शुसोभित करने वालों व्यक्तियों के स्तर में गिरावट आई है। शायद उच्च शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता में गिरावट का यह एक मूल कारण है। भारतीय सेवा के अधिकारियों को अपने पद का दंभ होता है। वहीं विश्वविद्यालय के कुलपति को अपने प्राध्यापक होने का एक अभिमान भी होता है इसलिए दोनों अधिकारियों के बीच सामंजस्य कम ही बैठ पाता है। एक समय था यह विश्वविद्यालय के कुलपति का स्थान नौकरशाही में सचिव के पद से ऊंचा होता था। छत्तीसगढ़ में परिवर्तन करके अब विश्वविद्यालय के कुलपति के स्थान को उप सचिव के बराबर कर दिया गया है। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में कुलपति के नियुक्ति को लेकर पिछले चार वर्षों से विवाद चल रहा है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और राज्यपाल मोदी सरकार के द्वारा नियुक्त किए जाते है इसलिए नियुक्ति में आपसी सामंजस्य का अभाव देखा गया है। जिस विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति राज्य सरकार के मनमुताबिक न हो तो विश्वविद्यालय के काम-काज भी प्रभावित किए जाते है। अजीब सोच है शीर्ष लोगों के विवाद के चलते शैक्षणिक संस्था की प्रतिष्ठा धूमिल होती है और छात्रों का नुकसान होता है। राजधानी के सबसे पुराने पं. रविशंकर विश्वविद्यालय में डा. सच्चिदानंद शुक्ल नए कुलपति बनाए गए है। वे उत्तरप्रदेश के अयोध्या के है इसलिए स्थानीय कुलपति की मांग को लेकर उनकी नियुक्ति पर विवाद हुआ था। डॉ. शुक्ला ने पदभार ग्रहण कर लिया है और अपने भावी योजनाओं के बारे में भी बताया है। ऐसा होता है जब कोई नया कुलपति पद ग्रहण करतेे है तो बाते बड़ी-बड़ी की जाती है लेकिन विश्वविद्यालय के राजनीति और समस्याओ में ऐसे उलझतें है कि सारी योजनाएं फुर्र हो जाती है। डॉ. शुक्ला ने भी विश्वविद्यालय की छबी सुधारने और अकादमी कार्य को बेहतर करने अपनी भावनाएं व्यक्त की है। लेकिन उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में एक म्यूजियम बनाने की बात कही है जहां छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को सहेजा जाएगा। वैसे तो यह कार्य खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय को करना चाहिए। दूसरी बात यह कार्य करने के लिए राजधानी में संस्कृति विभाग है और पुरखौती मुक्तांगन में म्यूजियम बनाकर ऐसा किया जा रहा है। रविशंकर विश्वविद्यालय में पढऩे वाले विद्यार्थी छत्तीसगढ़ के है जो अपनी संस्कृति से परिचित है। नए कुलपति डॉ. शुक्ला का ध्यान अकादमिक उन्नति करनें में होना चाहिए। पर क्या करें प्रदेश सरकार जब छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बढ़ावा दे रही है तो कुलपति भला कहा पीछे रहने वाले।