भारत के 117 अरब डॉलर के शिक्षा उद्योग में कारोबार लगातार तेजी से बढ़ रहा है और नए कॉलेजों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। हालांकि इसके बावजूद हजारों युवा भारतीय सीमित या बिना कौशल के स्नातक की डिग्री हासिल कर ले रहे हैं। यह स्थिति विकास के एक महत्वपूर्ण दौर में अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रही है। भारत में आगे बढऩे के लिए बेताब कुछ युवा नौकरी पाने की उम्मीद में दो या तीन डिग्री के लिए भी भुगतान कर रहे हैं। वे छोटे अपार्टमेंट भवनों के अंदर या बाजारों में दुकानों के अंदर चल रहे कॉलेजों की ओर आकर्षित होते हैं। राजमार्गों पर संस्थानों के लिए बिलबोर्ड लगे हुए हैं, जिनमें जॉब प्लेसमेंट का वादा किया जा रहा है। यह एक अजीब विरोधाभास है। एक तरफ भारत के शीर्ष प्रौद्योगिकी और प्रबंधन संस्थानों ने अल्फाबेट सीईओ के सुंदर पिचाई और माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नडेला जैसे ग्लोबल बिजनेस लीडर्स को तैयार किया है। दो दर्जन से अधिक छात्रों और विशेषज्ञों के अनुसार दूसरी ओर ऐसे हजारों छोटे निजी कॉलेज हैं, जिनके पास नियमित कक्षाएं नहीं हैं, वे कम प्रशिक्षित वाले शिक्षकों को नियुक्त करते हैं, पुराने पाठ्यक्रम का उपयोग करते हैं, और कोई व्यावहारिक अनुभव या नौकरी प्लेसमेंट प्रदान नहीं करते हैं। दुनिया भर में, छात्र अब तेजी से बढ़ रही डिग्री की लागत और उसके रिटर्न पर विचार करने लगे हैं। उच्च शिक्षा पर अमेरिका सहित विश्व स्तर पर विवाद बहस शुरू हो गई है। कई लाभकारी संस्थानों को सरकारी जांच का भी सामना करना पड़ा है। फिर भी भारत में शिक्षा क्षेत्र की जटिलताएं तेजी से बढ़ती ही जा रही हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार भारत दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देशों में एक है। यहां सरकार नियमित रूप से किसी भी अन्य देश की तुलना में अधिक युवाओं पर अधिक फोकस करती है। प्रतिभा मूल्यांकन फर्म व्हीबॉक्स के एक अध्ययन के अनुसार भारत में सभी स्नातकों में से आधे शिक्षा प्रणाली की खामियों के कारण बेरोजगार हैं। छत्तीसगढ़ में भी कमोबेश यही स्थिति है प्रदेश में तकनीकि और प्रबंधन संस्थान कुकुरमुत्ते की तरह फुल गए है इसकी तुलना में प्रदेश में बेरोजगार के अवसर नहीं बढ़े यही कारण है कि तकनीकि और मेडिकल की व्यवसायिक शिक्षा लेने वाले स्नातक सरकारी नौकरी की इच्छा लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं में लग जाते है। अभी पीएसी की परीक्षाओं से लेकर चपरासी तक की भर्तीयों में इंजीनियर, दंत चिकत्सक की डिग्री वाले उम्मीदवार आवेदन करते है। प्रदेश में इस वजह से बेरोजगारी भी बहुत अधिक है। प्रदेश सरकार ने बेरोजगारों को 25 सौ रूपए भत्ता देने की घोषणा की है। हालाकि हितग्राही बेरोजगारों के चयन के लिए कई शर्र्तें रखी गई है। यही कारण है कि रोजगार कार्यालयों में दर्ज बेरोजगारों की संख्या 19लाख के करीब है जबकि अब तक बेरोजगारी भत्ता के तहत केवल 74 हजार आवेदन ही मिले है। उनमें से भी केवल 35हजार के करीब आवेदन भत्ता के लिए अनुशंसित किए गए है और स्वीकृत आवेदनों की संख्या मात्र 12500 है। ऐसी स्थिति में प्रदेश में बेरोजगारी के पैमाने को समझा जा सकता है। इसके लिए शैक्षिणिक संस्थाओं की गुणवत्ता बढृ़े और निजी क्षेत्र में रोजगार के बेहतर अवसर मिले तभी बेरोजगारी की समस्या पर काबू पाई जा सकती है।