भाजपा ने कर्नाटक के लिए जारी अपनी 189 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में ही ये संकेत दे दिए थे कि इस बार वह सत्ता में वापसी के लिए सोशल इंजीनियरिंग का दांव आजमाएगी। पार्टी के सभी 224 उम्मीदवारों की लिस्ट सामने आने के बाद यह और साफ हो गया है कि दिग्गज नेताओं की नाराजगी के बाद भी वह विभिन्न जातियों को साथ लेकर चलने की कोशिश करेगी और बड़ी जीत की राह तलाश करेगी। पार्टी ने 64 लिंगायत उम्मीदवारों को टिकट देकर उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश की है, तो 45 वोक्कालिगा उम्मीदवारों को टिकट देकर कुमारस्वामी के वोट बैंक में भी सेंधमारी करने की कोशिश की है। उसने ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय को भी पर्याप्त भागीदारी देकर उन्हें अपने साथ जोडऩे की कोशिश कर एक संपूर्ण समाज समावेशी पार्टी होने का संदेश दिया है। उसे इसका लाभ मिल सकता है। लिंगायत समुदाय भाजपा के साथ पारंपरिक रूप से जुड़ा हुआ है और बीएस येदियुरप्पा जैसे दिग्गज लिंगायत नेताओं के साथ होने से पार्टी को अनुमान है कि यह वर्ग इस बार भी उसके साथ बना रहेगा। इसी वर्ग से आने वाले जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी जैसे नेता अब कांग्रेस के टिकट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। भाजपा ने इन दिग्गज नेताओं को टिकट देने से इनकार कर दिया था। इन बागियों के कारण पार्टी को नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है। लेकिन भाजपा नेताओं का दावा है कि लिंगायत समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिए जाने के कारण बागी नेता बेअवसर हो जाएंगे और समुदाय का साथ उन्हें मिलता रहेगा। कर्नाटक में वोक्कालिगा दूसरा सबसे प्रभावी समुदाय माना जाता है। लगभग 15 फीसदी मतदाता वाला यह समुदाय अभी तक जेडीएस के साथ माना जाता है। लेकिन राज्य में अपने दम पर सत्ता में आने के लिए भाजपा इस वर्ग को अपने साथ जोडऩे की जीतोड़ कोशिश कर रही है। इसी रणनीति को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने इस वर्ग के 45 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। यदि इस किसान-मजदूर वर्ग का एक हिस्सा उसके साथ आ जाता है तो भाजपा की सत्ता की राह आसान हो सकती है। भाजपा एक रणनीति के अंतर्गत ओबीसी-दलित समुदाय को अपने साथ जोडऩे की कोशिश कर रही है। उसकी यह कोशिश केंद्र सरकारों के साथ-साथ राज्य सरकारों और पार्टी संगठन के स्तर पर भी देखने को मिल रहा है। इसी रणनीति पर चलते हुए पार्टी ने कर्नाटक में 37 दलित उम्मीदवारों को टिकट थमाया है, तो ओबीसी समुदाय के 32 लोगों को टिकट दिया है। अनुसूचित जनजाति के लोगों को 18 टिकट देकर भाजपा ने उन्हें भी साधने की कोशिश की है। भाजपा ने कर्नाटक में केवल 10 ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया है। दक्षिण भारत की दलित-ओबीसी केंद्रित राजनीति में दूसरे दलों की ओर से उसके ब्राह्मण नेतृत्व को लेकर हमेशा प्रश्न खड़े किए जाते रहे हैं। लेकिन इस सूची में भाजपा ने पूरी तरह ब्राह्मणों को अपनी प्राथमिकता सूची से बाहर कर दिया है। दूसरे समुदायों में इसका बेहतर संदेश गया तो लंबी अवधि में यह भाजपा के पक्ष में जा सकता है। उसका यह रुख उसे तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी ताकत प्रदान कर सकता है। भाजपा ने सबसे बड़ा दांव पुराने चेहरों को हटाकर नए चेहरों को अवसर देने के मामले में खेला है। पांच-छह बार विधायक रह चुके दिग्गज नेताओं की जगह नए चेहरों को मैदान में उतारा गया है। पार्टी को अनुमान है कि इन नए चेहरों के आगे एंटी इनकंबेंसी फैक्टर कमजोर हो सकता है, जिससे उसकी सत्ता में वापसी की राह आसान हो सकती है।