झीरमघाटी के समीप अरनपुर में 10 डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड डीआरजी के जवानों सहित 11 लोगों की शहादत ने एक बार फिर प्रदेश को झकझोर दिया है। इस घटना के बाद माओवादी संगठन ने विज्ञप्ति जारी कर अपने इस कायराने करतूत को लेकर स्पष्टीकरण भी दिया है। उनका कहना है कि केन्द्र सरकार द्वारा नक्सलियों को 2024 तक समाप्त करने की रणनीति के खिलाफ उन्होंने इस हिंसा को अंजाम दिया है। भारतीय जनता पार्टी के सरकार के समय माओवादी संगठन बना था और इसके बाद बस्तर के स्थानीय लोगों ने सलवा जुडुम शुरू किया था। माओवादी संगठन ने इसके विरूद्ध हिंसा शुरू कर दी थी। भाजपा शासन के 15 वर्षों में माओवादी हिंसा के चलते सुरक्षा बल के जवानों ने बड़ी संख्या में शहादत दी। कांग्रेस पार्टी के एक काफिले पर हमला कर तत्कालिन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, महेन्द्रकर्मा सहित 28 नेताओं की हत्या कर दी थी। झीरमघाटी का वह हत्या कांड आज भी वर्तमान सरकार की फाइल में जीवित है। इस कांड को लेकर राजनीति तो जमकर हो रही है लेकिन इसकों अंजाम देने वाले माओवादी संगठन के खिलाफ कोई आक्रमक नीति नहीं बन पाई। आश्चर्य की बात यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले कांगेस पार्टी ने अपने जनघोषणा पत्र को झीरमघाटी के शहीदों को समर्पित किया था इसके साथ ही इस बात का संकल्प भी लिया था कि नक्सल समस्या के समाधान के लिए नीति तैयार की जाएगी और वार्ता शुरू करने के लिए गंभीरता पूर्वक प्रयास किए जाएंगे। पिछले चार वर्षों में नक्सल समस्या के समाधान के लिए कोई नीति बनी हो ऐसा ध्यान में नहीं आता न ही वार्ता शुरू करने के लिए प्रयास शुरू किए गए। कांग्रेस पार्टी की ओर से जो बयान आता है वह भी इस समस्या के समाधान की ओर गंभीरता से नहीं दर्शाता। शासन की ओर से ऐसा माना जा रहा कि चार वर्षों से माओवादी हिंसा नहीं हो रही है। केन्द्र सरकार भी कुछ ऐसा ही कह रही है कि देशभर में माओवादी हिंसा कम हुई है। प्रदेश में नक्सलियों ने बीते साढे चार वर्षों में अपनी रणनीति बदल दी है अब वे कोई बड़ा हमला करने के बजाय टारगेट किलिंग कर रहे है। एक आंकड़े के मुताबिक बस्तर संभाग में बीते पांच सालों के दौरान 500 से ज्यादा लोग अपनी जान गवा चुके है इनमें 335 ग्रामीण और 168 जवान शामिल है। हालाकि इसी दौरान 327 नक्सली भी मुठभेड़ों में मार गिराए है। सवाल यह कि प्रदेश सरकार बस्तर संभाग में छाई शांति का क्या मायने निकाल रही है? कही ऐसा तो नहीं कि इस शांति का लाभ उठाकर माओवादी संगठन अपना विस्तार कर रहे है। जब माओवाद के खिलाफ आक्रमण नहीं होगा तो फिर शांति तो बनी ही रहेगी। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने से ही बैलाडीला की पहाड़ी हो या सिलेगर में सुरक्षा बलों का कैंप खोलने का विरोध स्थानीय लोग सरकार के खिलाफ उठ खड़े हुए है। सिलेगर में आज भी विरोध प्रदर्शन हो रहा है इस तरह की स्थानीय आंदोलन के पीछे माओवादी के सहभागिता से इंकार नहीं किया जा सकता। शासन को चहिए कि माओवाद के खिलाफ सख्त रवैया अपनाए जिससे आगामी विधानसभा चुनाव भय मुक्त वातावरण में हो सकें।