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केंद्र में सरकार और राज्य की राजनीति

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भारतीय संविधान का चरित्र परिसंघात्मक है, इसका मतलब है केंद्र और राज्य दो इकाइयां स्वायत्त रूप से सत्ता चलाएंगे। इस आधार पर केंद्र के राजनीतिक संगठन और राज्य के संगठन अलग अलग होंगे, अभी संगठन तो स्वायत्त हो नहीं सकते इसलिए राष्ट्रीय पार्टियों की अखिल भारतीय संगठन और राज्य की इकाइयां मिल कर काम करती हैं। इस प्रकार सताता और संगठन के दो केंद्र बिंदु बनते हैं, केंद्र और राज्य। भले ही दोनों स्वायत्त होने का दावा करने हैं लेकिन केंद्र का नियंत्रण भरपूर होता है। आज की स्थिति में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टी हैं, डोना के राष्ट्रीय स्तर पर संगठन की रचना है लेकिन पार्टी के संगठन का व्यवहार सत्ता के साथ बदल जाता है। अगर केंद्र में पार्टी की सत्ता है तो राज्य की सत्ता हो या संगठन केंद्र के नियंत्रण में कार्य करते हैं। अभी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में केंद्र की सरकार है, इसलिए किसी भी राज्य में भाजपा की सरकार हो या संगठन केंद्र सरकार के निर्देश पर काम करते हैं। इस प्रवृत्ति से राज्य के संगठन पर प्रतिकूल असर भी पड़ता है। जैसे छत्तीसगढ़ में जब 2003 से 2013 तक डॉ. रमन सिंह की सरकार थी तब केंद्र में कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी। ऐसे में प्रदेश सरकार अपने विवेक से कार्य करती थी और चुनाव के समय राज्य संगठन स्वविवेक से निर्णय कर लेते थे। जैसे ही 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तब से प्रदेश की भाजपा सरकार और संगठन केंद्र के निर्देशों पर निर्भर हो गया। इससे प्रदेश का संगठन कमजोर होता चला गया। ऐसा ही कांग्रेस के साथ भी हुआ जब केंद्र और राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकारें हुआ करती थी। अब जो संगठनात्मक नुकसान कांग्रेस को भुगतना पड़ा वही स्थिति अब भाजपा की बन रही है। इस रवैए का असर केवल केंद्र और राज्य नहीं बल्कि इसके नीचे के स्तर पर भी दिखाई देता है। जैसे छत्तीसगढ़ में जब नगरीय निकाय के चुनाव हुए थे तब स्थानीय संगठन के बजाय प्रदेश सरकार और संगठन चुनाव लडने लगे थे, यही हाल अभी उत्तरप्रदेश में हो रहे नगरीय निकाय के चुनाव में देखना को मिल रहा है। इससे जिला और निचले स्तर की संगठन इकाइयां कमजोर होती हैं और राज्य संगठन पर निर्भरता बढ़ती जाती है। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हो रहा है, लेकिन ज्यादातर भूमिका मोदी सरकार के मंत्रियों और राष्ट्रीय अध्यक्ष की दिखाई दे रही है। ऐसा सभी राज्यों में होता रहा जबकि केंद्र में सरकार न हो तो राज्य का संगठन ज्यादा जिम्मेदार और मेहनतकश होते हैं। 2018 में भाजपा की हार और कांग्रेस की जीत को भी इस तर्क की कसौटी पर कस कर देख सकते हैं।