कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम ने किसी को चौंकाया नहीं, यहां तक कि एग्जिट पोल के नतीजे भी बता रहे थे कांग्रेस की बढ़त है। यह बात जरूर है की कांग्रेस को 136 सीटें मिल जायेंगी ऐसा नहीं लग रहा था। कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए 113 का आंकड़ा बहुमत के लिए चाहिए। पिछले चुनाव में भाजपा ने 104 सीटें जीतकर भी सरकार नहीं बना पाई थी। जद एस और कांग्रेस ने मिलकर भाजपा से सत्ता छीन ली थी लेकिन कुछ समय बाद 16 कांग्रेस और जद एस के विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और भाजपा की सरकार बन गई। इस बार भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ और कांग्रेस को बड़ा फायदा हुआ और जनता दल एस को जनता ने नकार दिया। इस चुनाव के परिणाम ने कई सबक राजनेताओं को सिखाया है। पहला तो यह कि जनता के मुद्दों को छोड़कर अगर इधर उधर की बात करेंगे तो मीडिया में स्थान भले ही मिल जाय, वोट नहीं मिलेंगे। इस चुनाव में जिन 16 विधायकों ने इस्तीफा देकर भाजपा की सरकार बनने में मदद की थी, जनता ने उनको भी हरा दिया। इस प्रकार दलबदल का खेल करने वालों को सबक मिलेगी। कांग्रेस को जो ज्यादा सीटें मिली या भाजपा केवल 65 पर सिमट गई इसके पीछे जनता दल का कमजोर प्रदर्शन रहा। ऐसा लगता है बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में आने के बाद चुनाव में बजरंगबली प्रचार के केंद्र में आ गए थे। इस मुद्दा के गरमाने से अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण हुआ, जेडीएस का अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस की ओर चला गया जिसके कारण परिणाम एकतरफा कांग्रेस के पक्ष में चला गया। यह भाजपा की उम्मीदों के विपरीत रहा। इस चुनाव में भाजपा सरकार के कुशासन और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया गया, 40त्न कमीशन वाली सरकार के नाम से कांग्रेस आने प्रचार किया। अब मुद्दों को देखें तो छह माह बाद छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने हैं, ऐसे में भ्रष्टाचार यहां भी मुद्दा बना तो कांग्रेस को जवाब देना मुश्किल होगा। कर्नाटक चुनाव में भी जनता को अधिकाधिक रेवड़ी बांटने की घोषणा की गई थी, यह भी निश्चित तौर पर चुनाव में मतदाताओं में प्रभावी रहा। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में जो घोषणाओं की थी और आगामी चुनाव में किसान, धान और गोबर का मुद्दा भी चलेगा। इन मुद्दों पर भाजपा को भी गौर करना होगा।