Home इन दिनों दिल्ली की गद्दी का रास्ता यूपी से होकर जायेगा

दिल्ली की गद्दी का रास्ता यूपी से होकर जायेगा

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वो काम कर दिखाया है जो इससे पहले विपक्ष के तमाम नेता नहीं कर पाये थे। देश में सबसे बड़े मोदी विरोधी के रूप में अपनी पहचान बनाने को आतुर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन तमाम विपक्षी पार्टियों के नेताओं को एक मंच पर लाने में सफलता हासिल कर ली है जो इससे पहले तक तरह-तरह के कारणों के चलते एक साथ और एक मंच पर नहीं आते थे। लेकिन नीतीश ने विपक्षी नेताओं को एक करने के लिए जो देश भ्रमण अभियान शुरू किया था उसके अपेक्षित परिणाम सामने आये हैं। बिहार में सत्तारुढ़ महागठबंधन की ओर से बताया गया है कि राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, मल्लिकार्जुन खरगे, एमके स्टालिन, हेमंत सोरेन, अखिलेश यादव, शरद पवार और उद्धव ठाकरे आदि सभी बड़े विपक्षी नेता 23 जून को पटना में होने वाली बैठक में शामिल होंगे। इसके अलावा नीतीश कुमार, लालू यादव और वामदलों के नेता तो इस बैठक में मेजबान की भूमिका में रहेंगे ही। विपक्षी दलों के बीच इस बात पर लगभग सहमति बन गयी है कि देश की 543 संसदीय सीटों में से 450 पर विपक्षी दलों का संयुक्त उम्मीदवार भाजपा उम्मीदवार से टक्कर लेगा। विपक्ष का पूरा प्रयास है कि भाजपा विरोधी मतों का बंटवारा किसी भी हालत में नहीं होने पाये इसके लिए किसी दल को यदि कुछ त्याग भी करना पड़े तो वह भी किया जायेगा। बताया जा रहा है कि कांग्रेस की ओर से कम से कम 350 संसदीय सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की बात पर अड़े रहने की वजह से विपक्षी एकता में दिक्कत आ रही थी लेकिन अब कांग्रेस भी कुछ और त्याग करने के लिए राजी हो गयी है। अभी हाल ही में अपने अमेरिकी दौरे के दौरान राहुल गांधी ने एक सवाल के जवाब में स्पष्ट कर दिया था कि भाजपा और आरएसएस को हराने के लिए कांग्रेस को और बड़ा त्याग करना होगा तो वह करेगी। वर्तमान में भाजपा के पास अकेले दम पर लोकसभा में 301 सीटें हैं। विपक्ष का प्रयास है कि अगली लोकसभा में 450 सीटें जीत कर भाजपा को विपक्ष का दर्जा हासिल करने लायक भी नहीं छोड़ा जाये। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता के लिए यह फॉर्मूला पहले ही दे चुकी हैं कि जिस राज्य में जो दल मजबूत है उसको बाकी विपक्षी दल अपना पूरा समर्थन दें ताकि भाजपा का पूरी ताकत के साथ मुकाबला किया जा सके। लेकिन इस फॉर्मूले से सबसे ज्यादा दिक्कत कांग्रेस को ही है। दरअसल कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर आधार है और कई राज्यों में उससे क्षेत्रीय दलों ने ही सत्ता छीन ली है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह बड़ा मुश्किल हो रहा है कि कैसे वह दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी के समक्ष समर्पण कर दे, कैसे वह तेलंगाना में बीआरएस, आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस, बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा, बिहार में जनता दल युनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल और तमिलनाडु में द्रमुक आदि के समक्ष समर्पण कर दे। वैसे कांग्रेस की केंद्रीय इकाई भले इस समर्पण के लिए राजी हो गयी है लेकिन उसकी प्रांतीय इकाइयां ऐसे किसी समझौते के विरोध में हैं।